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क्षितिशयन (खिदि-सयन ) - मुनि का मूलगुण ५-३२ श्रीणमोह (खीणमोह ) बारहवाँ गुणस्थान ११-२५ क्षुधा परीपह - ८-२, ३ क्षेत्रादि (खित्ताइ ) - अपरिग्रहाणुव्रत का अतिचार २-२० क्षेत्रवृद्धि ( खेत्त-बुद्धी ) – दिग्वत का अतिचार २-२२ क क्षेमंकर - तीसरे कुलकर व मनु पृ. ७ टिप्पणी अमंधर – चौथे कुलकर व मनु पृ. ७ टिप्पणी
गति (गदि ) - धर्मद्रव्य-जन्य १-४ गति मार्गणा ( गई ) - प्रथम मार्गणा १२-३ गंगा - नदी १-३४ गंध - मुनि के लिये बयं ४-२
-दो प्रकार का ९-७: - प्राणेन्द्रिय का विषय १२ -', गंधर्व ( गधन्वय) - राज्यकाल १०० वर्ष १-७३ गहरे -- ( गरहा ) सम्यक्त्व का चौथा गुण ३-६ गात्राभ्यंगविभूषण (गायाभंगविभूमण ) - मुनि के लिये वर्थ - .... गात्रोद्वर्तन ( गायस्सुवण ) -- मुक्ति के लिये वज्यं ४ --', गुप्त (गुप्त)- राज्यकाल २३१ वर्ष १६४ गुणव्रत ( गुणव्यय)- तीन प्रकार का २-३
- दूसरी प्रतिमा का अंग ३-१ : गुणस्थान ( गुणमण्णा) - ११ - १ गुप्तनरेश (गुन--) - वंश का राज्यकाल २५५ वर्ष ५-७० गुनि ( गुनी ) - ७.-३० गुप्ति ( गुत्ति ) -- भावसंबर का भेद ९-२८ । गृहस्थ चैय्यावृत्य (गिहि-वेयावड़िय) - मुनि के लिए वयं ५-६ गृहान्तर निषद्या (गिहतर निमेजा) - मुनि के लिये व ४-५ गृहारम्भ (मिहारंभ ) - गृहस्थी के कार्य ३ -३२ गृहीमात्र ( गिहिमन) - मुनि के लिये मनिधि वय - गोत्रकर्म ( गोय-)- १-१४ गौ (गो) - सत्याशुन्नत का अतिचार २-
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