SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० क्षितिशयन (खिदि-सयन ) - मुनि का मूलगुण ५-३२ श्रीणमोह (खीणमोह ) बारहवाँ गुणस्थान ११-२५ क्षुधा परीपह - ८-२, ३ क्षेत्रादि (खित्ताइ ) - अपरिग्रहाणुव्रत का अतिचार २-२० क्षेत्रवृद्धि ( खेत्त-बुद्धी ) – दिग्वत का अतिचार २-२२ क क्षेमंकर - तीसरे कुलकर व मनु पृ. ७ टिप्पणी अमंधर – चौथे कुलकर व मनु पृ. ७ टिप्पणी गति (गदि ) - धर्मद्रव्य-जन्य १-४ गति मार्गणा ( गई ) - प्रथम मार्गणा १२-३ गंगा - नदी १-३४ गंध - मुनि के लिये बयं ४-२ -दो प्रकार का ९-७: - प्राणेन्द्रिय का विषय १२ -', गंधर्व ( गधन्वय) - राज्यकाल १०० वर्ष १-७३ गहरे -- ( गरहा ) सम्यक्त्व का चौथा गुण ३-६ गात्राभ्यंगविभूषण (गायाभंगविभूमण ) - मुनि के लिये वर्थ - .... गात्रोद्वर्तन ( गायस्सुवण ) -- मुक्ति के लिये वज्यं ४ --', गुप्त (गुप्त)- राज्यकाल २३१ वर्ष १६४ गुणव्रत ( गुणव्यय)- तीन प्रकार का २-३ - दूसरी प्रतिमा का अंग ३-१ : गुणस्थान ( गुणमण्णा) - ११ - १ गुप्तनरेश (गुन--) - वंश का राज्यकाल २५५ वर्ष ५-७० गुनि ( गुनी ) - ७.-३० गुप्ति ( गुत्ति ) -- भावसंबर का भेद ९-२८ । गृहस्थ चैय्यावृत्य (गिहि-वेयावड़िय) - मुनि के लिए वयं ५-६ गृहान्तर निषद्या (गिहतर निमेजा) - मुनि के लिये व ४-५ गृहारम्भ (मिहारंभ ) - गृहस्थी के कार्य ३ -३२ गृहीमात्र ( गिहिमन) - मुनि के लिये मनिधि वय - गोत्रकर्म ( गोय-)- १-१४ गौ (गो) - सत्याशुन्नत का अतिचार २- For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy