________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Achar
मुनि धर्म [१] जिनकी आत्मा संयममें सुस्थिर हो चुकी है, जो सांसारिक वासनाओं अथवा आन्तरिक एवं बाह्य-परिग्रहों से मुक्त हैं, जो अपनी तथा दूसरों की आत्माओंको कुमार्गसे बचा सकते हैं, अथवा जो छ: काय (यावन्मात्र प्राणियों) के रक्षक हैं। और जो आन्तरिक ग्रंथियोंसे रहित हैं, उन महर्षियों के लिये जो अनाचरणीय है, वह इस प्रकार है :-॥१॥
१ औदेशिक ( उद्देश्यसे अर्थात् उसीके लिए बनाया गया भोजन ) २ क्रीतकृत (साधु के निमित्त ही खरीदकर लाया हुआ भोजन) ३ नित्यक (सदैव एक ही घरका भोजन) ४ अभिकृत (दूरीसे लाया गया भोजन) ५ रात्रिभुक्ति, ६ स्नान, ७ चंदन आदि सुगंधित पदार्थ, ८ पुष्पों की माला, ९ वीजन क्रिया (पंखा से हवा करना) ॥२॥
१० संनिधि (संचित किये हुये खाद्य व अन्य पदार्थ ), ११ गृहीमात्र (गृहस्थके योग्य सामग्री), १२ राजपिंड ( राजाके यहांका भोजन), १३ किमिच्छक (जहांसे जो चाहे वह ले ऐसी दानशालाका भोजन), १४ संवाहन (तैल आदिका मर्दन), १५ दंत प्रधावन, १६ संप्रश्न (कौतुकवश प्रश्न करना) १७ देहप्रलोकन (दर्पण में अपने शरीरकी शोभा देखना ), ॥३॥
१८ अष्टापद (जुआ खेलना), नालिका ( शतरंज आदि खेल खेलना), २० छत्र धारण करना, २१ चिकित्सा (हिंसा निमित्तक औषधोपचार करना), २२ पैरोंमें जूते पहिनना, २३ अग्नि जलाना । ॥४॥
२४ शय्याकर पिंड (जिस गृहस्थने रहने के लिये आश्रय दिया हो उसीके यहां का भोजन), २५ आसंदी पर्यंक (कुर्सी पलंग आदिका उपयोग), २६ गृहांतर निषद्या (घरके भीतर बैठना), २७ शरीरका उद्वर्तन करना (उबटन आदि लगाना) ॥५॥
२८ गृहस्थ-वैयावत्य (गृहस्थकी सेवा करना), २९ आजीव-वृत्ति (कुछ लेकर काम कर देना), ३० तप्तानिवृतभौजित्व (सचित्त जलका ग्रहण), ३१ आतुर-स्मरण (रोग या क्षुधाकी पीड़ा होनेपर अपने प्रिय जन का नाम ले लेकर
For Private And Personal Use Only