Book Title: Tattva Samucchaya
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नय-वाद भी होता ही है, जैसे इन्द्र, पुरन्दर और शक यद्यपि एक ही देवोंके गजाके वाचक हैं, तथापि इन्द्र शब्द उसके ऐश्वर्यका बोध कराता है, पुरन्दरसे प्रकट होता है कि उसने अपने शत्रुके पुगेका नाश किया था, तथा शक्र शब्द सूचित करता है वह बड़ा सामर्थ्यवान् है। इस प्रकार शब्द भेदानुसार अर्थ-भेद करनेवाला समभिरूढ़ नय है ॥३६॥ ७. एवभूत नय जीव अपने मन, वचन व कायकी क्रिया द्वारा जो जो काम करता है, उस प्रत्येक कर्मका बोधक अलग अलग शब्द है और उसीका उस समय प्रयोग करनेवाला एवंभूत नय है। जैसे मनुष्यको पूजा करते समय ही पुजारी व युद्ध करते समय ही योद्धा कहना ॥३७॥ इन नैगम आदि नयों में जो प्रथम तीन द्रव्यार्थिक और शेष चार पर्यायार्थिक कहे गये हैं, उनमें प्रथम चार अर्थात् नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुमूत्र ये अर्थप्रधान हैं, और शेष तीन शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत शब्दप्रधान हैं ।।३८। उपनय-३ सद्भूत उपनय-२ उपनयके तीन भेद हैं : सद्भूत, असद्भूत और उपचरित । गुण, गुणी, पर्याय व द्रव्य तथा कारक व स्वभावके भेदसे वस्तुमें नामादिके द्वारा भेद करनेवाला सद्भूत उपनय है। इसके भी दो भेद हैं : शुद्ध गुण गुणी आदिको विषय करने वाला शुद्ध सद्भूत उपनय है । और अशुद्ध गुण गुणी आदिको विषय करनेवाला अशुद्ध सद्भुत उपनय है ।।३९॥ असद्भूत उपनय-३ पर पदार्थोंके गुणों को आत्मगुण कहनेवाला असद्भूत उपनय है । इसके. तीन भेद हैं : स्वजाति, विजाति और मिश्र। इन तीनों में भी प्रत्येकके पुनः तीन भेद होते हैं ॥४०॥ ___ जब किसी वस्तुके प्रतिबिम्बको देखकर कहा जाता है कि यह वही वस्तु है तो यह द्रव्य और पर्यायमें अभेद करनेवाला स्वजाति असद्भुत उपनय है ।।४१॥ जो एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय आदि शरीर पुद्गल कायसे सम्बन्ध रखते हैं, उन्हें जीवका स्वरूप कहना कि यह एकेन्द्रिय जीव है, इत्यादि, यह विजाति असद्भूत उपनय है॥४२॥ ____जीव भी ज्ञेय है और अजीवभी शेय है, अतएव वे दोनों शानके विषय होनेसे ज्ञानरूप ही हैं, इस प्रकार ज्ञानको स्वजाति जीव तथा विजाति अजीक से आभन्न बतलानेवाला स्वजाति-विजाति या मिश्र असद्भुत उपनय है ।।४३।। For Private And Personal Use Only

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