________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
धमाँग उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य, ये दश भेद मूनिधर्मके हैं ॥ १ ॥
__ क्रोधके उत्पन्न होने के साक्षात् बाहिरी कारण मिलनेपर भी जो थोड़ा भी क्रोध नहीं करता, उसके उत्तमक्षमा धर्म होता है ॥ २ ॥
__ जो मनस्वी पुरुष कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप, शास्त्र और शीलादिके विषयमें थोडासा भी गर्व नहीं करता, उसीके मार्दव धर्म होता है ।। ३ ॥
जो श्रमण कुटिल भाव अर्थात् मायाचारी परिणामों को छोड़कर शुद्ध हृदयसे चारित्रका पालन करता है, उसके नियमसे तीसरा आर्जव नामका धर्म होता है ॥४॥
जो मुनि दूसरेको क्लेश पहुंचानेवाले वचनों को छोड़कर अपना और दूसरेका हित करनेवाले वचन कहता है, उसके चौथा सत्य धर्म होता है |॥ ५ ॥
जो परम मुनि इच्छाओंको रोककर और वैराग्यरूप विचारोंसे युक्त होकर आचरण करता है, उसके शौच धर्म होता है ॥ ६ ॥
व्रतों और समितियोंके पालनरूप, दंडत्याग अर्थात् मन, वचन, कायकी प्रवत्तिके रोकनेरूप, और पांचों इंद्रियोंके जीतनेरूप परिणाम जिस जीवके होते हैं उसके संयम धर्म नियमसे होता है ॥ ७ ॥
पांचों इंद्रियोंके विषयोको तथा चारों कषायोंको रोककर शुभ ध्यानकी प्राप्तिके लिये जो अपनी आत्माका विचार करता है, उसके नियमसे तप होता है ॥ ८ ॥
जिनेंद्र भगवानने कहा है कि जो जीव समस्त परद्रव्योंसे मोह छोड़कर संसार, देह और भोगोंसे उदासीनरूप परिणाम रखता है, उसके त्याग धर्म है ॥९॥
जो मुनि सब प्रकारके परिग्रहोंसे रहित होकर और सुखदुःख के देनेवाले ( कर्मजन्य) निजभावोंको रोककर निर्द्वन्द्वतासे अर्थात् निराकुलभावसे आचरण करता है, उसके आकिंचन्य धर्म होता है ॥ १० ॥
जो पुण्यात्मा स्त्रियों के सारे सुंदर अंगों को देखकर उनमें रागरूप दुर्भाव करना छोड़ देता है, वही दुर्द्धर ब्रह्मचर्य धर्मको धारण करता है ॥ ११ ॥
[ कुंदकुंदाचार्यकृत बारस अनुवेक्खा]
७०-८०
For Private And Personal Use Only