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Achar
मार्गणा-स्थान
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अपने कार्य व अकार्य, श्रेय या अश्रेयको समझनेवाला हो, सबके विषय में समदर्शी हो, दया और दानमें तत्पर हो. कोमल परिणामी हो, ये पीतलेश्या वा लेके लक्षण हैं ॥५०॥
___ दानशील हो, सज्जन हो, चोखा अर्थात् विशुद्ध हो, कर्मशील हो, दूसरों के बहुतसे अपराधों को भी क्षमा कर दे, माधुओं और गुरुजनोंका आदर-सन्मान करने में सुख माने, ये पद्म लेश्यावाले मनुष्य के लक्षण हैं ।।५१।।
पक्षपात नहीं करता और न अपना स्वार्थ साधता है, किन्तु सब जीवोंके प्रति समताभाव रखता है तथा इष्टसे गग, अनिष्टसे विद्वेष एवं कुटुम्बादिमें आसक्ति नहीं रखता, ये शुक्ललेश्या वाले के लक्षण हैं ॥५२॥
११ भव्यत्व मार्गणा जिन जीवों की अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्यरूप, अनन्त चतुष्टय की सिद्धि होनेवाली है वे भव्यसिद्ध हैं, और जो इसके विपरीत हैं अर्थात् संसारसे कभी सिद्ध होनेवाले नहीं हैं वे अभव्य हैं ॥५३॥
१२ सम्यक्त्त्व मागणा छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय व नव पदार्थ इनका जिनेन्द्र भगवान्ने जिस प्रकारसे वर्णन किया है उस ही प्रकारसे इनके श्रद्धान करने को सम्यक्त्व कहते हैं । यह दो प्रकारसे होता है--एक तो केवल आज्ञासे अर्थात् आगम वाक्य होने मात्रसे श्रद्धान, और दूसरा अधिगमसे अर्थात् युक्ति व तर्क सहित परीक्षापूर्वक ज्ञान करके श्रद्धान ॥५४॥
दर्भन मोहनीय कर्मके क्षीण हो जाने पर जो निर्मल श्रद्धान होता है उसको क्षायिक सम्यक्त्व कहते हैं। यह सम्यक्त्व नित्य अन्य कर्मोंके क्षय होनेका कारण है ।।५५।
दर्शन मोहनीय कर्मकी सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे पदार्थोंका जो चल मलिन अगाढरूप श्रद्धान झेता है उसको वेदक सम्यक्त्व कहते हैं ॥५६।।
दर्शन मोहनीय कर्मके उपशमसे जो पदार्थोंका श्रद्धान होता है उसको उपशम सम्यक्त्व कहते हैं। यह सम्यक्त्व इस तरहका निर्मल होता है जैसा कि निर्मली आदि पदार्थों के निमित्तसे कीचड़ आदि मलके नीचे बैठ जानेपर जल निर्मल होता है ।।५७॥
जो जीव सम्यक्त्वसे तो व्युत हो गया है, किन्तु मिथ्यात्वको प्राप्त नहीं हुआ है, उसको सासन कहते हैं । यह जीव औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक भावों से पांचवें पारिणामिक भावों से युक्त होता है ।।५८||
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