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:१०: कर्म प्रकृति
जिनसे बंधा हुआ यह जीव संसारमें परिभ्रमण किया करता है उन आठ कर्मोका क्रमपूर्वक वर्णन करता हूँ । उसे ध्यानपूर्वक सुनिये ॥ १ ॥
(१) ज्ञानावरणीय (२) दर्शनावरणीय (३) वेदनीय (४) मोहनीय तथा (५) आयुकर्म (६) नामकर्म (७) गोत्रकर्म तथा (८) अन्तरायकर्म । इस तरह ये आठ कम संक्षेपमें कहे हैं ।। २-३ । ।
१ ज्ञानावरणीय कर्म-५ (१) मतिज्ञानावरणीय (२) श्रुतज्ञानावरणीय (३) अवधि ज्ञानावरणीय, (४) मनःपर्यय ज्ञानावरणीय, और (५) केवल ज्ञानावरणीय, ये पांच ज्ञानावरणीयके भेद हैं ॥ ४ ॥
२ दर्शनावरणीय कर्म-९ (१) निद्रा (२) प्रचला (३) निद्रानिद्रा (४) प्रचलाप्रचला (५) त्यानगृद्धि (६) चक्षुदर्शनावरणीय (७) अचक्षुदर्शनावरणीय (८) अवधिदर्शनावरणीय (९) केवलदर्शनावरणीय-ये दर्शनावरणीय कर्मके ९ भेद हैं ।।५-६||
३ वेदनीय कर्म-२ सातावेदनीय (जिसे भोगते हुए सुख उत्पन्न हो) तथा असातावेदनीय ( जिसके कारण दुःख हो ) ये दो भेद वेदनीय कर्मके हैं। सातावेदनीयके बहुतसे भेद हैं और असातावेदनीयके भी ।।७।।
४ मोहनीय कर्म-२५ दर्शन मोहनीय तथा चारित्र मोहनीय-ये दो भेद मोहनीय कर्मके हैं। दर्शन मोइनीयके तीन तथा चारित्र मोहनीयके दो उपभेद हैं ॥ ८ ॥
दर्शन मोहनीयके सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यक्त्वमिथ्यात्व मोहनीय, ये तीन भेद हैं ॥ ९ ॥
चारित्र मोहनीयके कषाय मोहनीय तथा नो कषाय मोहनीय ये दो भेद हैं ॥१०॥
क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चार कषायोंके प्रत्येक अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन के भेदसे कषायोत्पन्न कर्म सोलह प्रकारका
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