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Achar
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तत्त्व-समुच्चय
___जो जीव दो, तीन, चार व पांच इंद्रियोंसे युक्त हैं उनको वीर भगवान् के उपदेशसे त्रसकाय समझना चाहिये ॥८॥
४ योग मार्गणा पुद्गलविपाकी शरीरनामकर्मके उदयसे मन, वचन व कायसे युक्त जीवकी जो कर्मों के ग्रहण करनेमें कारणभूतशक्ति है उसीको योग कहते हैं ।। ९ ॥
सत्य, असत्य, उभय, और अनुभय, इन चार प्रकार के पदार्थों से जिस पदार्थको जानने या कहने के लिये जीवके मन वचनकी प्रवृत्ति होती है उस समयमें मन और वचनका वही नाम होता है। और उसके सम्बन्धसे उस प्रवृत्तिका भी वही नाम होता है ।॥१०॥
समीचीन भावमनको (पदार्थको जाननेकी शक्तिरूप ज्ञानको) अर्थात् समीचीन पदार्थको विषय करनेवाले मनको सत्यमन कहते हैं। और उसके द्वारा जो योग होता है उसको सत्यमनोयोग कहते हैं। सत्यसे जो विपरीत है उसको मिथ्या कहते हैं। तथा सत्य और मिथ्या दोनों ही प्रकार के मन को उभय मन जानना चाहिये ॥१॥
जो न तो सत्य हो और न मृषा हो उसको असत्यमृषा मन कहते हैं। और उनके द्वारा जो योग होता है उसको असत्यमृधामनोयोग कहते हैं ॥१२॥
दश प्रकारके सत्य अर्थके वाचक वचनको सत्यवचन और उससे होनेवाले योगको सत्यवचनयोग कहते हैं। तथा इससे जो विपरीत है उसको मृषा और जो कुछ सत्य और कुछ मृषाका वाचक है उसको उभय वचनयोग जानिये ॥१३॥
जो न सत्यरूप हो, न मषारूप ही हो, उसको अनुमय वचनयोग जानिये । असंशियों की समस्त भाषा और संशियोंकी आमन्त्रणी आदिक भाषा अनुभय भाषा कही जाती हैं ॥१४॥
____ जनपदसत्य, सम्मतिसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, व्यवहारसत्य, संभावनासत्य, भावक्षस्य और उपमासत्य, इस प्रकार सत्यके दश भेद हैं ॥१५॥
पके हुए चावलको भात कहना, रानीको देवी कहना, पाषाणादिकी प्रतिमाको चन्द्रप्रभु भगवान कहना, किसी पुरुषविशेषका नाम जिनदत्त रखना, वर्णानुसार किसी वस्तुको श्वेत कहना, आपेक्षिक लम्बाई के अनुसार दीर्घ कहना, लकड़ी लाते हुए या आग जलाते हुए गनुष्यको कहना यह भात पका रहा है'
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