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भावना
तीन भुवनके तिलक तथा तीनों भुवनोंके इन्द्रों द्वारा पूज्य देवकी वंदना करके भव्य जीवोंको आनंददायक अनुप्रेक्षाओंका वर्णन करता हूं ॥१।। १ अध्रुव, २ अशरण, ३ संसार, ४ एकत्व, ५ अन्यत्व, ६ अशुचित्व, ७ आत्रव, ८ संवर, ९ निर्जरा, १० लोक, ११ बोधि-दुर्लभ और १२ धर्म, ये बारह अनुप्रेक्षाओं के नाम कहे हैं। इनको समझकर नित्य प्रति मन, वचन और काय की शुद्धि सहित इनकी भावना कीजिये ॥२-३।।
१ अध्रुव भावना जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसका नियमसे नाश होता है। परिणमन स्वरूप होनेसे कुछ भी शाश्वत नहीं है ॥४॥
जन्म मरण से सहित है, यौवन जरा सहित है, लक्ष्मी विनाश सहित है, इस प्रकार सब पदार्थ क्षणभंगुर हैं, ऐसा जानिये ।।५।।
जैसे नवीन मेघ तत्काल उदय होकर विनिष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार इस संसार में परिवार, बन्धुवर्ग, पुत्र, स्त्री, भले मित्र, शरीर का लावण्य, गृह, गोधन इत्यादि समस्त पदार्थ अस्थिर हैं ॥६॥
इस जगत् में इन्द्रियों के विषय, मित्रवर्ग तथा उत्तम घोडे, हाथी, स्य इत्यादि सब इन्द्रधनुष तथा बिजली के चमत्कारवत् चंचल हैं; वे दिखाई देकर तुरन्त नष्ट हो जाते हैं ॥७॥
भव्य जीवो ! तुम समस्त विषयों को क्षणभंगुर सुनकर महा मोह को छोड़ो, और अपने मनको विषयोंसे रहित करो जिससे उत्तम सुखकी प्राप्ति हो ॥८॥
२ अशरण भावना . जिस संसारमें देवों के इन्द्रोंका भी विनाश देखा जाता है. और जहां हरि ( नारायण ), हर ( रुद्र ) और ब्रह्मा आदि बड़े बड़े ईश्वर भी काल द्वारा भक्षण कर लिये गये, वहां शरण ( आश्रय ) कहां १ ॥९॥
जैसे सिंहके पंजोंमें पड़े हरिण की कोई भी रक्षा करनेवाला नहीं है, उसी प्रकार इस संसारमें मृत्युसे ग्रसित प्राणी की कोई भी रक्षा नहीं कर सकता ॥१०॥
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