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तत्त्व-समुच्चय
उत्कृष्ट प्रोषधोपवासकी जो विधि है वही मध्यम प्रोषधोपवासकी सभझनी चाहिये । केवल भेद इतना है कि मध्यम उपवासमें पानीके सिवाय शेष सब वस्तु का त्याग होता है ॥२३-२४ ॥
बड़े आवश्यक कार्यको जानकर, पापका निवारण करता हुआ, अनारंभ भावसे जो अपना कार्य भी करता है और उपवासभी धारण करता है, वह जघन्य प्रोषधोपवास है ॥२५॥
५. सचित्त त्याग पत्र, अंकुर, कंद, फल, बीज आदिक हरित पदार्थ और अप्रासुक पानी का त्याग करना सचित्त-त्याग प्रतिमा है ॥२६।।
६. दिवा ब्रह्मचर्य व निशिभोजन मन, वचन, काय, और कृत, कारित, अनुमोदना अर्थात् नौ प्रकारसे दिनके समय मैथुनका जो त्याग करता है वह छठी प्रतिमा का धारक श्रावक है ॥२७॥
यदि कोई रात्रिभोजन करता है, तो वह ग्यारह प्रतिमा से पहिली प्रतिमाका भी श्रावक नहीं रहता। इस कारण रात्रिभोजनका नियमसे त्याग करना चाहिये ॥२८॥
गत्रिके समय चमड़ा, हड्डी, कीड़ा, मूषक, सांप और बाल आदिक जो कुछ भी भोजनमें पड़ जाता है वह दिखाई नहीं देता और सब कुछ खा लिया जाता है ।।२९||
__ इस प्रकार रात्रिभोजनमें बहुतसे दोष जानकर मन, वचन, काय से रात्रिभोजनका त्याग करना चाहिये ॥३०॥
७. ब्रह्मचर्य पूर्वोक्त नौ प्रकारसे सर्वथा मैथुनका त्याग और स्त्री-कथाका भी त्याग करनेवाला सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमाका धारक होता है ॥३१॥
८. आत्म-त्याग जो कुछ भी थोड़ा या बहुत गृह-सम्बन्धी आरम्भ हो उसका सदैव परित्याग करनेवाला आठवीं आरम्भ-त्याग प्रतिमाका धारक कहा गया है ॥३२॥
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