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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परीषद सत्य से चिट्टमाणस्स उवसग्गामधारण । संकाभीओ न गच्छेज्जा उद्वित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ शय्या उच्चावयाहिं से जाहिं तवस्ती भिक्खु थामवं । नाइवेलं विम्मेज्जा पावदिट्ठी हिम्मई ॥ २२ ॥ परिक्कुवरस्यं लद्धं कल्लाणमदु वा पावयं । किमेराई करिस्तइ एवं तत्थ ऽ हियासए | २३ १२ आक्रोश अक्को सेज्जा परे भिक्खु न तेसिं पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोच्चाणं फरसा मासा दारुणा गामकंटगा । तुसिणीओ उबेहेज्जा न ताओ मणसीकरे || २५ ॥ १३ वध हओ न संजले भिक्खू मणं पिन पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खू धम्मं समायरे ॥ २६ ॥ समणं संजयं दन्तं हणेज्जा कोइ कत्थई । नव्य जीवस्स नासु त्ति एवं पेहेज्ज संजए ॥ २७॥ १४ याचना दुक्करं खलु भो निच्चं अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ नत्थि किंचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्ग- पविट्ठस्स पाणी नो सुप्पसारए । सेओ अगारवा त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए || २९ ॥ १५ अलाभ परेसु घासमेसेज्जा भोयणे परिणिट्टिए । लद्धे पिंडे अलद्धे वा नाणुतप्पेज्ज पंडिए ॥ ३० ॥ अज्जेवाहं न लब्भामि अवि लाभो सुवे सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे अलाभो तं न तज्जए ॥ ३१ ॥ For Private And Personal Use Only ३३
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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