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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्व-समुच्चय १६ रोग नचा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहट्ठिए । अदीणो भावए पन्नं पुट्ठो तत्थहियासए ॥ ३२ ।। तेइच्छं नाभिनन्देज्जा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्ण जं न कुज्जा न कारवे ।। ३३ ॥ १७ तृणस्पर्श अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तवस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स हुन्जा गायविराहणा ॥ ३४ ॥ आयवस्स निवारण अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवन्ति तन्तुजं तण-तज्जिया ॥ ३५ ॥ १८ मल किलिन्नगाए मेहावी पंकेण व रएण वा । प्रिंसु वा परियावेण सायं नो परिदेवए ॥ ३६ ॥ वेएज्ज निज्जरापेही आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउ त्ति जल्लं कारण धारए ॥ ३७॥ १९ सत्कार-पुरस्कार अभिवायणमब्भुट्ठाणं सामी कुज्जा निमन्तणं । जे ताई पडिसेवन्ति न तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे अन्नाएसी अलोलुए। रसेसु नाणुगिज्झेज्जा नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ॥ ३९ ॥ २० प्रज्ञा से नूणं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ १० ॥ अह पच्छा उइज्जन्ति कम्माणाणफला कडा ! एवमस्सासि अप्पाणं नच्चा कम्मवि गियं ॥ ४१ ॥ २१ अज्ञान निरङ्कगम्मि बिरओ मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि धम्म कल्लाण-पावगं ।। ४२ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020812
Book TitleTattva Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1952
Total Pages210
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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