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परीषह
तबोवहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥ ४३ ॥ नत्थि नृणं परे लोए इड्ढी वा वि तवस्सिणो । अदु वा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ ४४ ।।
२२ अदर्शन अभू जिणा अत्थि जिणा अदु वा वि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिन्तए ॥ ४५ ॥ एऐ परीसहा सव्वे कासवेण निवेइया । जे भिक्खू न विहम्मेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६॥
[उत्तराध्ययनसूत्र-२]
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