Book Title: Suktimuktavali
Author(s): Somprabhacharya, Ajitsagarsuri
Publisher: Shanti Vir Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ सूक्तिमुक्तावली अर्य--पार्श्वप्रभु के चरणों की नख की कान्ति का समूह तुम्हारी रक्षा करे यह आचार्य का सबके लिये आशीर्वाद है। वह नख कान्ति समुह कैसा है उसका उत्प्रेक्षालंकार रूप उपमा में वर्णन किया गया है: __ भगवान के द्वारा किया गया जो तप [ उप्रतपस्या ] वही हुआ हाथी, उस हाथी के मस्तक में लगे हुये सिन्दूर का समूह ही है. मानों, कषाय रूपी बनी को भस्म करने के लिये दावानल ही है मानों, ज्ञान रूपी दिन का प्रारम्भ सूर्य का सदय ही है मानों (क्योंकि सूर्य उदय होते समय लाल होता है और भगवान के नख भी लाल हैं) मुक्ति स्त्री के स्तन कमश की केशर ही है मानों, कल्याण रूपी वृक्ष की कूपल का हर्षोल्लास है मानों, इसप्रकार पार्य प्रभु का नख-कान्ति-समूह तुम्हारी तथा हम सब की रक्षा करे। अय कविः सज्जनपुरुषान् प्रति स्वविज्ञप्तिमाहसन्तः सन्तु मम प्रसन्नमनसो वाचां विचारोद्यता: सूतेऽम्मः कमलानि तत्परिमलं वाता वितन्वंति यत् । किंवाभ्यर्थनयानय यदि गुणोऽस्त्यासां ततस्ते स्वयं कारः प्रथनं न चेदथ यशःप्रत्यर्थिना तेन किं ॥२॥ व्याख्या-सन्त: सज्जना मम प्रसन्नमनसः संतु ममोपरि प्रसन्नचित्ता भवंतु किंविशिष्टाः संतः पाचां विचारोद्यताः वाचा कविवाणीनां विचारे सदसद्विचारे उद्यताः सावधानाः। इयं कविवाणी समीचीना इयं असमीचीना इति विचारज्ञाः । यत्

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 155