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कर आत्मघात कर लिया और मरकर पाटलिपुत्र में व्यन्तरी देवी के रूप में उत्पन्न । पण्डिता चम्पापुरी से भागकर पाटलिपुत्र में देवदत्त नामक वेग के पास पहुंची और उसे अपना सब यनान्त सुनाया। देवदत्त ने अपनी चातरी से सुदर्शन को अपने वश में करने की प्रतिज्ञा को (१-१०), उधर राजा धात्रीचाहन ने मच्ची बात जानकर पश्चात्ताप क्रिया, सुदर्शन सेट से क्षमा याचना को नया आधा
राज्य स्वीकार करने की प्रार्थना की (११-१७) । सूदान ने राजा को सम्बोधन · किया । अपने दुःख को अपने ही कर्मों पा पाल बतलाया तथा मुनि दीक्षा लेने
का अपना निश्चय प्रकट किया (१८-२२., सुदर्शन जिन मन्दिर में गया । जिनेन्द्र की पूजा व स्तुति की तथा निमलवाहन मुनि से अपने पूर्वभव सुनने की इच्छा प्रकट की (२४-४०)। मुनि ने उसके पूर्व भव का इस प्रकार वर्णन किया-भरत क्षेत्र के विन्ध्यप्रदेश में कौशलपुर । वहाँ राजा भूपाल व रानी वसुन्धरा । उनका पुत्र लोकपाल शूरवीर और बुद्धिमान् (४१-४४)। एक बार राजा के सिंहासन पर रक्ष-रक्षको की पुकार । मन्त्री ने जानकारी दी कि वहाँ से दक्षिण दिशा में बिन्यगिरि पर व्याघ्र भोल तया कुरंगी भीलनी का निवाम । ध्यान की क्रूरता व प्रजा पीड़न | इस कारण प्रजा को पुकार (४५-४९) । राजा का उस भील को पराजित करने हेतु सेनापति को आदेश | भील राज्य द्वारा मेनापति की पराजय । राजपुत्र लोकपाल द्वारा ध्यान भील का हनन । व्याघ्र का कूकर योनि में जन्म और फिर कुछ पुण्य के प्रभाव से चम्पा में नर जन्म और फिर मरकर उसी नगर में सुभग गोपाल के रूप में जन्म व वृषभदास सेठ का ग्वाल होना (५०.६२), सुभग गोपाल का वन में मुनिदर्शन (६३-६७) । मुनि के आधार व गुणों का विस्तार से वर्णन (६८-८७) । कठोर शीत से अप्रभाषित ध्यानमग्न मुनि को देखकर गोप के हृदय में आदर भावना का उदय । अग्नि जलाकर मुनि की शीतबाधा को दूर करने का प्रयत्न व रात्रिभर गुरुभक्ति में तल्लोमता (८८.९४) । प्रातःकाल सब कार्यों का साधन सप्ताक्षर महामन्ध गोप को देकर मुनिराज का आकाश मार्ग से बिहार (९४-१०१) । गोपाल का सदाकाल उस मन्त्र का उच्चारण सेठ द्वारा पूछे जाने पर वृत्तान्त कथन | सेठ द्वारा उसकी धर्म बुद्धि की प्रशंसा व उसके प्रति अधिक वात्सल्य भाव से व्यवहार (१०१-१९१)। एक बारं गोप का वन में गाय-भैंसों को चराना । भैसों का नदी पार चले जाना, उनके लौटाने हेतु गोपाल का नदी में प्रवेश व एक ढूं5 से टकराकर पेट फटने से मृत्यु । मन्त्र के स्मरण सहित निदान करने से उसका सुदर्शन के रूप में सेठ वृषभदास के यहाँ जम्म । मन्त्र का प्रभाव वर्णन (११२-१२५), कुरंगी नामक भीलनी का बनारस में भैस के रूप में जन्म फिर घोबी की पुत्री के रूप में और वहाँ किंचित पुण्य के प्रभाव से भरकर मनोरमा के रूप में जन्म । धर्म का माहात्म्य (१२५.१३२) ।