Book Title: Sudarshan Charitram
Author(s): Vidyanandi, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 17
________________ २४ - अधिकार ४- सुदर्शन मनोरमा विवाह सुदर्शन का संवर्धन व सौन्दर्य (१-२६), सुदर्शन का विद्याग्रहण (२७-३५), उसी नगर के सेठ सागरदत्त और सेठानी सागरसेना की पुत्री मनोरमा और उसका रूप वर्णन (३६-२५८), सुदर्शन का अपने मित्र कपिल के साथ नगर का पर्यटन व पूजा के निमित्त जाती हुई मनोरमा के दर्शन ( ५९-६४ ), सुदर्शन का अपने far after से उसके सम्बन्ध में प्रश्न, तथा कपिल द्वारा उसका परिचय (६५७१), कुमार का मोहित होना । घर आकर या ग्रहण | अन्नपान विस्मरण | मोहयुक्त प्रलाप (७२-७६), पिता की चिन्ता तथा कपिल से कुमार को दशा के कारण को जानकारी (७७-७९), पिता का सागरदन के घर जाना । वहाँ मनोरमा की भी काम दशा (८०-८८), सेठ वृषभदास और सागरदत का वार्ता - लाप | विवाह का प्रस्ताव व स्वीकृति, ज्योतिषीका आगमन एवं विवाह तिथि का निर्णय | पूजा-अर्चना तथा विवाहोत्सव ( ८९-११७) । अधिकार ५ - सुदर्शन को श्रेष्ठ प्राि दम्पति के भोगोपभोग व मनोरमा का गर्भधारण व पुत्र - जन्म (१-५) वृषभदास सेठ का धर्माचरण । समाधिगुप्त मुनि का आगमन | वनपाल का भूपति से निवेदन तथा भूपति का वृषभादि नगरजनों सहित मुनि के दर्शन हेतु तपोवन गमन । मुनिवन्दन एवं मुनि का धर्मोपदेश ( ६-२३) । मुनि और श्रावक के भेद से धर्माचरण का उपदेश (२४-६२), राजा तथा भव्यजनों द्वारा व्रनग्रहण एवं वृषभदास सेठ की वंशग्य - भावना (६३-७३) । सेठ को मुनि से दीक्षा देने की प्रार्थना तथा मुनिकी अनुमति | सेठ द्वारा राजा से सुदर्शन के पालन को प्रार्थना। राजा की स्वकृति एवं सेट का अपने बन्धू- बान्धवों से पूछकर दीक्षा ग्रहण ( ७४-८६ ) सेठानी जिनमती द्वारा आर्थिक व्रत ग्रहण तथा दोनों की स्वर्ग प्राप्ति ( ८७-९०), सुदर्शन का श्रेष्ठपद पाकर सुखभोग और धर्माचरण (९१-१०१] । अधिकार ६ - कपिल का प्रलोभन तथा रानो अभयमती का व्यामोह सुदर्शन का नगर भ्रमण कपिला द्वारा दर्शन व मोहोत्पत्ति (१६) कपिल ' के बाहर जाने पर सखी को भेजकर कपिल के ज्वर पीड़ित होने के बहाने सुदर्शन सेठ को अपने पास बुलवाना और उससे काम-क्रीड़ा को प्रार्थना करना (७-३२), सुदर्शन का चकित होना । एकनारी अत का स्मरण एवं नपुंसक होने का बहाना बनाकर छुटकारा पाना ( ३३-४७ ) । वरान्त ऋतु का आगमन । राजा का वनक्रीडा हेतु नागरिकों सहित वनगमन ( ४८-५४), रानी का सुदर्शन के रूप पर मोहित होना तथा कपिला द्वारा उसे पुरुषत्वहीन बतलाना (५५-५८) । रानी I

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