Book Title: Stree Charitra Part 01
Author(s): Narayandas Mishr
Publisher: Hariprasad Bhagirath

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Page 14
________________ * भाषाटीकासहित. समझना चाहिये कि, जैसे कोई फलप्रेप्सु मनुष्य दोचार शाखाओंमें चढनेसेही यथेष्ट फल पासकता है, वृक्षकी प्रत्येक शाखाऑपर परिभ्रमण करनेकी उसे बहुत आवश्यकता नहीं रहती, तैसेही विद्याका मध्य प्राप्त होनेसे अर्थात ज्ञानवानोंकी लिखित कोई पुस्तक हो, उसको अनर्गल पढकर उसके तात्पर्यको समझलेनेसे आवश्यक ज्ञान प्राप्त होजाता है. प्रायः देखाजाता है कि, स्त्री पुरुषोंकी सारी आयु संसारकी तुच्छ चेष्टाओंमें व्यतीत होजाती है तो इसलोक, परलोकके सहायक विद्यारत्नके लाभके निमित्त. चार पांच वर्ष व्यय करना क्या कुछ अधिक है ? बिना विद्याध्यन किये स्त्रियोंके स्वाभाविक दोषोंमें न्यूनता नहीं आसकती, स्त्रियों के स्वाभाविक दोष गोस्वामी तुलसीदासजीने रामायण, लिखे हैं कि, चौक-नारि स्वभाव सत्य कवि कहहीं। औगुण आठ सदा उर रहहीं॥ साहस. अनृत, चपलता. माया। भय, अविवेक, अशांच, अदाया // Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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