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देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार.
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जाणिये तेने वस्तुनुं लक्षण कहिये. ते लक्षण बे प्रकारनुं छे एक लिंगबाह्य आकाररूप अने बीजं वस्तुमा रह्यो जे स्वरूप ते. ए बे भेद छे तेमां लिंगथी तो गायतुं लक्षण जे सास्नासहितपणो ते बाह्य आकाररूप लक्षण छे ए बाह्य लक्षणे जे
ओलखाण करे ते बालचाल छे अने जे वस्तुने धर्मे ओलखाय ते स्वरूपलक्षण कहिये, जेम चेतनालक्षण ते जीव, तथा चेतनारहित ते अजीव इत्यादिक लक्षणे लक्षणस्वरूप जाणवो एम अनेक रीतें जाणी लेवो. भेदाश्च हवे भेदतुं स्वरूप कहे छे. वक्तव्यवस्त्वंशाः के० जे वस्तु कथन करता होय तेहना चार भेद छे तत्र द्रव्यभेदाके० तिहां द्रव्यना भेद मूललक्षणे सरिखा पण पिंडपणे जूदा छे ते द्रव्ययी भेद कहिये. यथाके० जेम सर्वजीव जीवत्वसामान्ये सरिखा छे पण जीव जीव प्रते पोताना गुणपर्यायनो पिंडपणो जूदो छ कोइर्नु कोइमां मिलि जातो नथी ते माटे जीव अनंता द्रव्यमिन्नपणे तेमज अजीव अनंता द्रव्यभिन्नपणे एम पुद्गलपरमाणु पण जडतारूपपणे सरिखा पण सर्व परमाणुओ जूदा द्रव्य छे जे काले एटलाने एटला छे कोइ कालें वटे नही तेम नवो वधे नही ए सर्व द्रव्यथी भेद जाणवो.
हवे क्षेत्रांशः क्षेत्रथी भेद ते जे विस्तरे तो जूदो क्षेत्र अवगाहीने रहे जेम जीवादि द्रव्यना प्रदेश अवगाहनाधर्मे जूदा छे पण द्रव्यथी जूदा पडे नहीं, संलग्नपणे रहे गुणपर्याय सर्वप्रदेशे अनंता छे ते गुणपर्याय एक प्रदेश मूकी बीजा प्रदेशमां जाय नही, पर्यायविभाग एकनो अने प्रदेशनो अवगाह सरिखो छे पण ते पर्याय अनंता मिन छे अने जे अनंता पर्याय मलीने एक कार्य करे ते कार्यने गुण कहे छे. श्रीवीतराग सर्वज्ञ एम कहे छे ए क्षेत्रथी भेद छे..
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