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दिनो चम्पा,
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गिरिव्रज (राजगृह), श्रावस्तो, साकेत, काशी तथा कौशाम्बी भारत के बडे नगर थे । व्यापारी लोग चम्पा से अपने-अपने पोतो ( जहाज़ो) में माल भर कर स्वर्णभूमि (बर्मा) तथा पूर्वी द्वीपसमूह तक जाया करते | अग तथा मगध में प्राय युद्ध हुआ करते थे । मगध के महाराज भट्टिय उपश्रेणिक के - समय अग की गद्दी पर महाराज ब्रह्मदत्त विराजमान थे । उन्होंने एक बार महाराज भट्टिय को युद्ध में पराजित भी किया था । बिम्बसार के समय उनके पुत्र दधिवाहन पर कौशाम्बी नरेश शतानीक ने आक्रमण करके उनको मार दिया और अग पर अधिकार कर लिया । किन्तु दधिवाहन के पुत्र दृढवर्मन् को शतानीक के पुत्र उदयन ने फिर से अगपति बना दिया, जैसा कि प्रियदर्शिका में लिखा हुआ है ।
बाद में सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार ने दृढवर्मन् से अग जीतकर उसे मगध में मिला लिया ।
२. मगध - वर्तमान पटना तथा गया जिलो को मगध राज्य कहा जाता था । महाभारत के अनुसार यहा का प्रथम नरेश बृहद्रथ था । उसके बाद जरासन्ध यहा का सब से प्रतापी राजा हुआ । उसके समय मे मगध मे ८०,००० ग्राम लगते थे और यह विध्याचल तथा गंगा, चम्पा तथा सोन नदियो के बीच में था । उसकी परिधि २३०० मील थी । राजा श्रेणिक तथा अजातशत्रु के समय मगध की सीमाए बहुत कुछ बढ गईं, जिनका यथास्थान आगे वर्णन किया जावेगा । श्रेणिक बिम्बसार ने ५२ वर्ष तथा उसके पुत्र प्रजातशत्रु ने २५ वर्ष तक राज्य किया ।
३ काशी - अथर्ववेद में काशी, कोशल तथा विदेहो का साथ-साथ वर्णन किया गया है । शाख्यायन श्रौतसूत्र के अनुसार श्वेतकेतु के समय जल जातुकर्ण्य काशी, विदेह और कोशल के नरेशो का पुरोहित था । काशीराज पुरुवशी थे । पौरववंश के बाद काशी मे ब्रह्मदत्त वश का राज्य हुआ । इस वंश की स्थापना काशी में महाभारत काल मे हुई थी। सभवत यह वश विदेहो की शाखा थी । ईसा पूर्व ७७७ में काशीराज अश्वसेन का देहान्त हुआ था ।
राजा अश्वसेन अथवा विश्वसेन ने अश्वमेध यज्ञ किया था। बाद में जैनियो के तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ ने उनकी पटरानी ब्रह्मदत्ता की कोख से १०