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बुला कर अपना राजा बनाया।
श्रेणिक नाम का कारण-जैन ग्रन्थो मे राजा भट्टिय का नाम उपश्रेणिक तथा बिम्बसार का नाम श्रेणिक बतलाया गया है। किन्तु विद्वानो का विवार है कि श्रेणिक उनका नाम न होकर उनकी उपाधि थी, जो उनको अपनी सैन्यबल के महत्त्वशाली 'श्रेरिणबल' के कारण प्राप्त थी । विद्वानो का विचार हे कि उन दिनो मगध मे सैनिको की अनेक श्रेणियाँ (Guilts) थी, जिनका मगठन स्वतन्त्र होता था। श्रेणियो मे सगठिन इन सैनिको की आजीविका युद्ध से ही चलती थी। राजा लोग उन सैनिको को अपने अनुकूल बना कर उनकी सहायता प्राप्त करने के लिये सदा उत्सुक रहा करते थे। सभवत भट्टिय इसी प्रकार की एक शक्तिशाली सैनिक श्रेरिण का नेता था, किन्तु बिम्बसार की प्राधीनता सभी श्रेणियो ने स्वीकार कर ली थी। इसीलिये भट्टिय को उपश्रेणिक तथा विम्बसार को श्रेणिक कहा गया । ऐसा जान पडता है कि बिम्बसार ने अपने बल को बढा कर अपनी सेनामो के श्रेरिण रूप को समाप्त कर अपनी सेनामो को अधिक सगठित किया । इसीसे बाद मे इसके पुत्र कुणिक अजातशत्रु को श्रेणिक नही कहा गया।
किन्तु अवन्ति के राजा प्रद्योत को मगध मे अपने भाई का राज्यच्युत होना अच्छा नही लगा। इसीलिये उसने मगध पर आक्रमण करने की तैयारी की। अवन्ति तथा मगध के घोर सघर्ष का वर्णन इन पक्तियो में आगे किया जावेगा। कहना न होगा सघर्ष मे मगध ही सफल हुआ । मगध मे भृत तथा श्रेणि बल की प्रधानता बाद में भी किसी न किसी रूप मे अवश्य बनी रही। इसलिये मगध की सैनिक शक्ति ऐसी प्रचण्ड्र बन गई कि अन्य राज्य उसके सामने नही टिक सकते थे।
सोलह महाजनपद-राजा बिम्बसार के समय तथा उसके बाद भी मगध की इतनी अधिक उन्नति हुई कि क्रमश वह भारत की सब से बडी राजनीतिक शक्ति बन गया । मगध की तत्कालीन इस उन्नति पर विचार करने के लिये भारत के उस समय के अन्य राज्यो का वर्णन करना भी आवश्यक है।
प्राचीन भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। इवमे से प्रत्येक राज्य को जनपद' कहा जाता था । कालान्तर में इनमे से कुछ जनपद उन्नति की