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मगध का प्राचीन इतिहास-श्रेणिक बिम्बसार मगध का राजा था। बिहार राज्य के जो प्रदेश आजकल पटना तथा गया जिलो में सम्मिलित है, उन्ही का प्राचीन नाम मगध था। उसकी राजधानी पहिले गिरिव्रज थी, जो राजगृह से कुछ दूर पच पहाडियो से बाहिर गया के कुछ पास थी। ऋग्वेद के 'तीसरे मण्डल के ५६ वे सूक्त के मत्र ४ के अनुसार मगध का राजा प्रपगड कीकट नरेश था । यास्क ने अपने निरुक्त (६-३२) मे कीकट को अनार्य बतलाया है। अभिधान चिन्तामणि मे कीकट मगध है। अथर्ववेद के पाचवें काण्ड के २२ वें सूक्त के १४ वे मत्र मे मगध का वर्णन है। मागधो को पहले बुरा समझा जाता था। किन्तु शाखायन ब्राह्मण में उनका सम्मानित रूप मे वर्णन किया गया है। महाभारत के अनुसार बृहद्रथ मगध के प्रथम राजा थे। उस समय मगध मे ८०,००० ग्राम लगते थे और वह विध्याचल पर्वत तथा गगा, चम्पा और सोन नदियो के बीच में था। रीज डेविड्स के अनुसार उस समय मगध की परिधि २३०० मील थी।
ऐतरेय ब्राह्मण मे प्राचीन काल के विविध राज्यो की शासनप्रणालियो का वर्णन करते हुए यह बतलाया गया है कि उन दिनो प्रतीची (पश्चिम) दिशा के सुराष्ट्र (गुजरात), कच्छ (काठियावाड) तथा सौवीर (सिन्ध)
आदि देशो के शासन को 'स्वराज्य' कहा जाता था और वहा के शासक 'स्वराट्' कहलाते थे। उदीची (उत्तर) दिशा मे हिमालय के परे उत्तरकुरु, उत्तर मद्र आदि जनपदो मे 'वैराज्य शासन प्रणाली थी। ये राज्य 'विराट' या राजा से विहीन होते थे। दक्षिण दिशा मे सात्वत (यादव) लोगो मे 'भोज्य' प्रणाली प्रचलित थी। इन' जनपदो के शासको को 'भोज' कहते थे। इसी प्रकार कुछ अन्य जनपदों के शासन का उल्लेख करके ऐतरेय ब्राह्मण मे लिखा है कि 'प्राच्य' (पूर्व) दिशा के देशो मे जो राजा है, वे 'सम्राट्' कहलाते है । उनका साम्राज्य के लिये 'सम्राट्' के रूप मे ही अभिषेक होता है । उन दिनो प्राचीन जनपदो में मगध और कलिंग प्रमुख थे।।
बार्हद्रथ वंश-मगध राज्य का प्रारभ ही साम्राज्यवाद की प्रकृति से हमा । महाभारत के समय मगध का राजा जरासन्ध था । उसके वश को