Book Title: Shesh Vidya Prakash Author(s): Purnanandvijay Publisher: Marudhar Balika Vidyapith View full book textPage 8
________________ ( ४ ) करना और मुनिराजों के दर्शन, वन्दन कर के जीवन में कुछ उतारना । इसी लक्ष्य के अनुसार किसी की रोक टोक बिना मेरी जीवन नैया बड़ी कुशलता से संसार समुद्र में आगे बढ़ती गई है। यह एक सौभाग्य है। मेरे ऊपर अत्यन्त वात्सल्य रखने वाले पूज्य आचार्य भगवंतों का, पन्यास भगवंतों का तथा मुनिराजों के उपरान्त मेरे मित्रों तथा स्नेहियों का यह आग्रह बारम्बार था कि 'मेरे पास जो संग्रह है उसको प्रकाश में लाया जाय । परन्तु अनुवाद करने का काम मेरे से नहीं बन पाया तब मेरे सहपाठी कल्याणमित्र, सहृदय, न्याय व्याकरण तीर्थ, श्रीमान् अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने गुर्जरानुवाद किया। परन्तु मेरी तथा बहुतों की इच्छा राष्ट्र-भाषा में अनुवाद बहुत ही स्पष्ट और सुन्दर होते हुए भी हम प्रकाशित करने में उत्साहित नहीं हो पाये । इसका दुःख है। न्याय, व्याकरण, काव्यतीर्थ मुनिराज श्री पूर्णानन्द विजयजी (कुमार श्रमण) जिनकी दीक्षा के ३१ वर्ष पूरे हुए हैं । मेरा सद्भाग्य था कि उनकी दीक्षा में मेरा पूर्ण रूप से सहयोग रहा है । तथा दीक्षा के पश्चात् भी उनके पठन-पाठन का मैं खूब परिचित हूँ। जैसा कि 'किञ्चिद्वक्तव्यं' में मुनिराज श्री ने स्वयं कह ही दिया है। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा भी खूब कर्णगोचर हो चुकी थी। वह दिन भी आ गया कि बाली (मारवाड़) के खूब लम्बे चौड़े व्याख्यान होल में, पूरे चतुर्विध संघ के बीच में जब भगवती सूत्र तथा जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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