Book Title: Shatrunjayatirthoddharprabandha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 14
________________ ११ उपोद्घात इस तीर्थ में पूज्यबुद्धि रखने वाले जैनसमाज में ऐसे विरल ही मनुष्य मिलेंगे जो जीवन में एक बार भी इस तीर्थ की यात्रा न कर गये हों या न करना चाहते हों। हजारों मनुष्य तो ऐसे हैं जो वर्षभर में कई दफे यहाँ हो जाते हैं। हिंदुस्तान में रेल्वे का प्रचार होने के पूर्व यात्रियों को दरदेश की मुसाफिरी करनी इतनी सहज न थी जितनी आज है। उस समय बडी बडी कठिनाइये रास्ते में भुगतनी पडती थी, कई दफे लुटेरों और डाकुओं द्वारा जान-माल तक भी लूटा जाता था, राजकीय विपत्तियों में बेतरह फंस जाना पडता था, तो भी प्रतिवर्ष लाखों लोग इस महातीर्थ की यात्रा करने के लिये अवश्य आया जाया करते थे। उस जमाने में, वर्तमान समय की तरह छूटे छूटे मनुष्यों का आना बडा ही कठिन और कष्टजन्य था इस लिये सेंकडों-हजारों मनुष्यों का समुदाय एकत्र हो कर और शक्य उतना सब प्रकार का बन्दोबस्त कर के आते जाते थे। इस प्रकार के यात्रियों के समुदाय का 'संघ' के नाम से व्यवहार होता था। उस पिछले जमाने में प्रायः जितने अच्छे धनिक और वैभवशाली श्रावक होते थे वे अपने जीवन में, संपत्ति अनुसार धन खर्च कर, अपनी और से ऐसे एक दो या उस से भी अधिक वार संघ निकालते थे और साधारण अवस्था वाले हजारों श्रावकों को अपने द्रव्य से इस गिरिराज की यात्रा कराते थे। गूर्जर महामात्य वस्तुपालतेजपाल जैसोंने लाखों-लाखों क्यों करोडों-रुपये खर्च कर कई बार संघ निकाले थे। उन पुराणे दानवीरों की बात जाने दीजिए। गत १९वीं शताब्दी के अंत में तथा इस २०वीं के प्रारंभ में भी ऐसे कितने ही भाग्यशालियों ने संघ निकाले थे जिन में लाखों रुपये व्यय किये गये थे। संवत् १८९५ में, जेसलमेर के * पटवों ने जो संघ निकाला था उस में कोई १३ लाख रुपये खर्च हुए थे। अहमदाबाद की हरकुंअर शेठाणी के संघ में भी कई लाख लगे थे। * इस संघ का संपूर्ण वृत्तान्त जानने के लिये देखो पढवों के संघ का इतिहास नामक मेरी पुस्तक। Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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