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आधुनिक वृत्तान्त
३३ कर्मासाह का उद्धृत किया हुआ मंदिर और प्रतिष्ठित की गई मूर्ति अद्यावधि जैनप्रजा के आत्मिक कल्याण में सहायभूत हो रही है । प्रतिदिन सेंकडों-हजारों भाविक लोग, इस महान मंदिर में विराजित भगवान् की भव्य, प्रशांत और निर्विकार प्रतिकृति के दर्शन, वंदन और पूजन कर आत्महित किया करते हैं । कृतज्ञ जैनप्रजा अपने इस तीर्थोद्धारक प्रभावक पुरुष का पुण्यजनक नामस्मरण भी उसी प्रेम से करती है, जिस तरह भरतादिक अन्यान्य महापुरुषों का करती है ।
इस उद्धारक पुरुष का यश अक्षररूप से जगत में शक्य जितने समय तक विद्यमान रखने के लिये तथा भावि जैनप्रजा को अपने पूर्व पुरुषों के कल्याणकर कार्यों का अवलोकन और अनुमोदन कराने के लिये, पंडित श्रीविवेकधीर गणिने अपनी सद्बुद्धि का सदुपयोग कर यह शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबंध बनाया है । इस प्रबंध में लेखकने, कर्मासाह का और उनके उद्धार का सब हाल स्पष्टरूप से लिखा है । प्रबंधकार; उद्धार के समय विद्यमान ही न थे, लेकिन उद्धार संबंधी सब उचित व्यवस्था ही उनके हाथ में थी । इसलिये ऐतिहासिक दृष्टि से यह प्रबंध बडे ही महत्त्व का है । पं. विवेकधीर गणि कौन
और किस गच्छ के व्यक्ति थे, इस विषय का सविस्तर जिक्र इस प्रबन्ध ही में किया हुआ है, इसलिये यहां पर ऊहापोह करने की अपेक्षा नहीं रहती । हां, इस प्रबन्ध के सिवा इन्होंने और भी कोई ग्रंथरचना वगैरह की है या नहीं ? इसके उल्लेख करने की आवश्यकता अवश्य रहती है । लेकिन, मुझे अपनी शोधखोल में, अभी तक इस विषय में, इससे अधिक और कुछ भी नहीं मालूम हुआ ।
ऑफ इन्डिया' के तारीख १४ फेब्रुआरी, (सन्-१९१६) के अंक में छपा है । इस वृत्तांत का शीर्ष, लेखकने (The Governor's Tour, In The City of Temples) (मंदिरों के शहर में गवर्नर की मुसाफरी) यह किया है और लेख में शहर के सौन्दर्य का चित्ताकर्षक वर्णन किया है ।
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