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ऐतिहासिक सार-भाग वचन द्वारा विनयवान् साहने पूर्ण सत्कार किया । मुमुक्षु वर्ग जितना था, उसे भी वस्त्र, पात्र और पुस्तकादि धर्मोपकरण प्रदान कर अगणित धर्मलाभ प्राप्त किया । इनके सिवा आबाल-गोपाल पर्यंत के वहां के कुल मनुष्यों को भी स्मरण कर कर उस दानवीर ने अन्न और वस्त्र का दान दे देकर सन्तुष्ट किया ।
विशाल हृदय और उदार चित्तवाले कर्मासाह ने इस प्रकार सर्व मनुष्यों को आनंदित और सन्तुष्ट कर अपने अपने देश में जाने के लिये विसर्जित किये । आप थोडे से दिन तक, अवशिष्ट कार्यों की समाप्ति के लिये, वहीं ठहरा ।
जिस भगवत्प्रतिमा के दर्शन करने के लिये प्रत्येक मनुष्य को सौ सौ रुपये टेक्स (कर) के देने पडते थे और जिसमें भी केवल एक ही बार, क्षणमात्र, दर्शन कर पाते थे, उसी मूर्ति के, पुण्यशाली कर्मासाह ने आपने पास से सुन्ने के ढेर के ढेर राजा को देकर, लाखों-करोडों मनुष्यों को बिना कोडी के खर्च किये, महिनों तक पूर्ण शांति के साथ पवित्र दर्शन कराये । सुकर्मी संघपति कर्मासाह की इस पुण्यराशी का कौन वर्णन कर सकता है ?
श्रीविद्यामंडनसूरि की आज्ञा को मस्तक पर धारण कर उनके वशवर्ती शिष्य विवेकधीर ने संघनायक श्री कर्मासाह के महान उद्धार की यह प्रशस्ति बनाई है । इसमें जो कुछ दोषकणिकायें दृष्टिगोचर हो, उन्हें दूर कर निर्मत्सर मनुष्य इसका अध्ययन करें ऐसी विज्ञप्ति है । इस प्रबन्ध के बनाने से मुझे जो पुण्य प्राप्त हुआ हो, उससे जन्मजन्मान्तरों में सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की मुझे प्राप्ति हो, यही मेरी एक केवल परम अभिलाषा है । जब तक जगत में सुर-नरों की श्रेणि से पूजित शत्रुजय पर्वत विद्यमान रहें, तब तक कर्मासाह के उद्धार का वर्णन करनेवाली यह प्रशस्ति भी विद्वानों द्वारा सदैव
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