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ऐतिहासिक सार-भाग वांची जाती हुई विद्यमान रहें । वैशाख सुदी सप्तमी और सोमवार के (प्रतिष्ठा के दूसरे) दिन यह प्रबन्ध रचा गया है और श्री विनयमंडन पाठक की आज्ञा से सौभाग्यमंडन नामक पंडित ने दशमी ओर गुरुवार के दिन इसकी पहली प्रति लिखी है ।
॥ शुभमस्तु ॥
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