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ऐतिहासिक सार-भाग नृपपुत्रों के चरित्रों का विशेष अवलोकन किया था । इसलिये उनकी तरह उसका भी मन देशाटन कर अपने ज्ञान की वृद्धि करने का हो गया । कितनेक नोकरों को साथ लेकर वह अहमदाबाद से प्रदेश की मुसाफरी करने के लिए निकल गया* । नाना गाँवो और शहरो में होता हुआ वह क्रम से चित्रकूट (चित्तोड) पहुंचा । वहां पर, महाराणा ने उसका यथोचित सत्कार किया ।
उपर उल्लेख हो चूका है कि, कर्मासाह कपडे का व्यापार करता था । बंगाल और चीन वगैरह देश-विदेशों से करोडों रुपये का माल उसकी दुकान पर आता जाता था । इस व्यापार में उसने अपरिमित रूप में द्रव्यप्राप्ति की थी । शाहजादा बहादुरखान ने भी कर्मासाह की दुकान से बहुत सा कापड खरीद किया । इससे साह की शाहजादा के साथ अच्छी मैत्री हो गई । स्वप्न में गौत्रदेवी ने आ कर कर्मासाह से कहा कि, “इस शाहजादा से तेरी ईष्ट सिद्धि होगी" इसलिये उसने खान-पान, वसन और प्रिय वचन से मुसाफर शाहजादा का बहुत सत्कार किया । बहादुरखान के पास इस समय खर्ची बिलकुल खूट गई थी, इसलिये कर्मासाह ने उसे एक लाख रुपये बिना किसी शरत के मुफ्त में दिये । शाहजादा इससे अति आनंदित हुआ और साह से कहने लगा कि, 'हे मित्रवर ! जीवन पर्यंत मैं तुम्हारे इस एहसान को न भूल सकूँगा ।' इस पर कर्मासाह ने कहा कि, 'आप ऐसा न कहें । आप तो हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं । केवल इतनी अर्ज है कि कभी कभी इस जन का स्मरण किया करें और जब आपको राज्य मिले, तब शत्रुजय के उद्धार करने की जो मेरी ____ * तवारिखों में तो लिखा है कि, "शाहजादा बहादुरखान, पिता ने अपने को थोडी सी. जागीर देने के कारण नाराज होकर गुजरात को छोड हिन्दुस्तान में चला गया और मुजफ्फर शाह ने बड़े बेटे सिकन्दरखान को अपना उत्तराधिकारी बनाकर बादशाह बनाया ।"
(गुजरातनो अर्वाचीन इतिहास ।)
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