________________
ऐतिहासिक सार-भाग
३९ लोगों में अनीति है । न कहीं दुर्जन का वास है और न कहीं दुर्व्यसन से किसीका विनाश है । इस सुंदर देश में, जिसने अपनी ऋद्धि से त्रिकूट को भी नीचा दिखा दिया है, ऐसा जगत्प्रसिद्ध चित्रकूट (चित्तोड) पर्वत है । इस पर्वत पर उन्नत और विशाल अनेक जिनमंदिर बने हुए हैं, जिनके रणरणाट करते हुए घंटनादों से सारा पर्वत शब्दायमान हो रहा है । चैत्यों के शिखरों पर स्थापित किये हुए सुवर्ण के देदीप्यमान कलश और बहुमूल्य वस्त्रों के बने हुए ध्वजपट, दूर ही से दृष्टिगोचर होने पर श्रद्धालुओं के पाप का प्रक्षालन करने लग जाते हैं । इस पर्वत पर अनेक साधुशालायें (उपाश्रय) बने हुए हैं, जिनमें निरन्तर अर्हदागमों का मधुर स्वर से जैनश्रमण स्वाध्याय करते रहते हैं । नगरनिवासी सभी मनुष्य आनंद और विलास में निमग्न रहते हैं । कई रमणीय सरोवर, अपने मध्य में रहे हुए कमलों के, पवन द्वारा उडे हुए परिमल से सुगंधमय हो रहे हैं । उस समय इस प्रसिद्ध पर्वत का शासक क्षत्रियकुलदीपक साङ्गा महाराणा* था, जो तीनलाख घोडों का मालिक था और जिसने अपने भुजाबल से समुद्रपर्यंत की पृथ्वी को स्वाज्ञाधीन किया था । उस नृपश्रेष्ठ के शौर्य, औदार्य और धैर्य आदि गुणों को देखकर तथा चतुरंग सैन्य की विभूति देखकर लोक उसे नया चक्रवर्ती मानते थे । __इस चित्रकोट नगर में, ओसवंश (ओसवाल ज्ञाति) में सारणदेव नामक एक प्रसिद्ध पुरुष हो गया है, जो जैन नृपति आमराज के
___* साङ्गा महाराणा का शुद्ध-संस्कृत नाम संग्रामसिंह था । कर्नल लॉर्ड के राजस्थान इतिहास में लिखा मुजब, इसने विक्रम संवत् १५६५ से १५८६ तक राज्य किया था । ____ - आमराज, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य बप्पभट्टि का शिष्य था । बप्पभट्टि का जीवन चरित्र 'प्रभावक चरित्र' आदि कई ग्रंथों में लिखा मिलता है । 'गौडवध' नामक प्राकृत काव्य के कर्ता कवि वाक्यति और बप्पभट्टि समकालीन थे । आमराज कान्यकुब्ज का अधिपति था । गौडपति प्रसिद्धनृपति धर्मपाल-जो पालवंश का प्रतिष्ठाता पुरुष था-आमराज का
___Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org