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ऐतिहासिक सार-भाग घोडे, वस्त्र, आभूषण आदि बहुमूल्य चीजें दे देकर कल्पवृक्ष की तरह उनका दारिद्र्य नष्ट कर देता था । जैन धर्म का पूर्ण अनुरागी था । उस पुण्यशाली तोलासाह के १ रत्न,* २ पोम, ३ दशरथ, ४ भोज
और ५ कर्मा नामक पांडवों के जैसे ५ पराक्रमी पुत्र हुए । इन भ्राताओं में जो सबसे छोटा कर्मासाह था, वह गुणों में सभी से बडा था अर्थात् वह पांचों में श्रेष्ठ और ख्यातिमान था । उसके सौन्दर्य, धैर्य, गांभीर्य
और औदार्य आदि सभी गुण प्रशंसनीय थे । ___ धर्मरत्नसूरि और सं. धनराज का संघ मेदपाट के पवित्र तीर्थस्थलों की और प्रसिद्ध नगरों की यात्रा करता हुआ क्रमशः चित्रकोट पहुंचा । सूरिजी के साथ संघ का आगमन सुनकर महाराणा साङ्गा अपने हाथी, घोडे, सैन्य और वादित्र वगैरह लेकर उनके सन्मुख गया । सूरिजी को प्रणाम कर उनका सदुपदेश श्रवण किया । बाद में, बहुत आडम्बर के साथ संघ का प्रवेशोत्सव किया और यथायोग्य सब संघजनों को निवास करने के लिये वासस्थान दिये । तोलासाह अपने पुत्रों के साथ संघ की यथेष्ट भक्ति करता हुआ सूरिजी की निरन्तर धर्मदेशना सुनने लगा । राजा भी सूरिजी के पास आता था और धर्मोपदेश सुने करता था । सूरिजी के उपदेश से सन्तुष्ट होकर, राजाने पाप के मूलभूत शिकार आदि दुर्व्यसनों का त्याग कर दिया । वहां पर एक पुरुषोत्तम नामका ब्राह्मण था, जो बडा गर्विष्ठ विद्वान् और दूसरों के प्रति असहिष्णुता रखनेवाला था । सूरिजी ने उसके साथ, राजसभा में सात दिन तक वाद कर उसे पराजित किया । इस बात का उल्लेख एक दूसरी प्रशस्ति में भी किया हुआ है । यथा -
* लावण्यसमय के कथनानुसार, इसने चित्रकोट नगर में एक जैन मंदिर बनवाया था । १. इन पांचों के परिवार का वंशवृक्ष प्रशस्त्यनुसार अन्त में दिया गया है ।
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