Book Title: Shatrunjayatirthoddharprabandha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 35
________________ ३ आधुनिक वृत्तान्त कर्मासाह का उद्धार । समरासाह की स्थापित की हुई मूर्ति का मुसलमानों ने पीछे से फिर सिर तोड दिया । तदनन्तर बहुत दिनों तक वह मूर्ति वैसे ही - खंडित रूप में ही - पूजित रही । कारण यह कि मुसलमानों ने नई मूर्ति स्थापन न करने दी । महमूद बेगडे के बाद गुजरात और काठियावाड में मुसलमानों ने प्रजा को बडा कष्ट पहुंचाया था । मंदिर बनवाने और मूर्ति स्थापित करने की बात तो दूर रही, तीर्थस्थलों पर यात्रियों को दर्शन करने के लिये भी जाने नहीं दिया जाता था । यदि कोई बहुत आजीजी करता था तो उसके पास से जी भर कर रुपये लेकर, यात्रा करने की रजा दी जाती थी । किसीके पास से ५ रुपये, किसीके पास से १० रुपये और किसीके पास से एक असरफी - इस तरह जैसी आसामी और जैसा मौका देखते वैसी ही लंबी जबान और लंबा हाथ करते थे । बेचारे यात्री बुरी तरह कोसे जाते थे । जिधर देखो उधर ही बडी अंधाधुन्धी मची हुई थी । न कोई अर्ज करता था और न कोई सुन सकता था । कई वर्षों तक ऐसी ही नादिरशाही बनी रही और जैन प्रजा मन ही मन अपने पवित्र तीर्थ की इस दुर्दशा पर आंसु बहाती रही । सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, चित्तोड की वीरभूमि में कर्मासाह नामक कर्मवीर श्रावक का अवतार हुआ, जिसने अपने उदग्र वीर्य से इस तीर्थाधिराज का पुनरुद्धार किया । इसी महाभाग के महान् प्रयत्न से यह महातीर्थ मूर्च्छित दशा को त्यागकर फिर जागृतावस्था को धारण करने लगा और दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक उन्नत होने लगा । फिर, जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि के समुचित सामर्थ्य ने इसकी उन्नति की गति में विशेष वेग दिया, जिसके कारण यह आज जगत् में "मंदिरों का शहर" (THE CITY OF TEMPLES)* कहा जा रहा है । मुंबई के वर्तमान गवर्नर लॉर्ड वेलिंग्टनने गत वर्ष में काठियावाड की मुसाफरी करते समय शत्रुजय की भी यात्रा की थी । उनकी इस यात्रा का मनहर वृत्तांत 'टाईम्स Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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