Book Title: Shatrunjayatirthoddharprabandha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ आधुनिक वृत्तान्त हो जाने से, मध्यभाग फट गया है और यदि यह 'भ्रमणमार्ग' न बनाया जाय तो शिल्पशास्त्र में निर्माता को सन्तति का अभाव होना लिखा है ।' मंत्री ने कहा 'चाहे भले ही मुझे सन्तति न हो, लेकिन मंदिर वैसा बनाओ, जिसे कभी तूटने-फटने का भय ही न रहे ।' शिल्पियों ने अपनी बुद्धिमत्ता से मंदिर के 'भ्रमणमार्ग' पर शिलायें लगाकर ऐसा बना दिया, जिससे न वह किसी तूफान ही का भोग हो सकता है और न सन्तत्यभाव ही का कारण । (कहते हैं कि ये शिलायें अद्यावधि वैसी ही लगी हुई हैं ।) इस प्रकार तीन वर्ष में मंदिर तैयार हो गया । बाद में मंत्रीने पट्टन से बडा भारी संघ निकाला और बहुत धन व्यय कर, सुप्रसिद्ध आचार्य श्रीहेमचंद्रसूरि से संवत् १२११* में अनुपम प्रतिष्ठा करवाई। मेरुतुंगाचार्य लिखते हैं कि, इस मंदिर के बनवाने में बाहड मंत्रीने एक करोड और ६० लाख रुपये खर्च किये हैं । षष्टिलक्षयुता कोटी व्ययिता यत्र मंदिरे । स श्री वाग्भटदेवोऽत्र वर्ण्यते विबुधैः कथम् ॥ मंदिर की व्यवस्था और निभाव के लिये मंत्रीने कितनी ही जमीन और ग्राम भी देव-दान में दिये कि जिनकी ऊपज से तीर्थ का सदैव का कार्य नियम पुरःसर चलता रहे । समरासाह का उद्धार । बाहड मंत्री के थोडे ही वर्षों बाद शाहबुद्दीन घोरीने उद्वेगजनक हमले शुरू किये । दिलीश्वर पृथ्वीराज चाहमान का पराजय कर उसने भारत के भाग्याकाश में विपत्ति के.बादलों की भयानक घटा के आने * प्रभावक चरित्र में संवत् १२१३ लिखा है । शिखीन्दु रविवर्षे (१२१३) च ध्वजारिपि व्यधापयत् । प्रतिमा सप्रतिष्ठां स श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114