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आधुनिक वृत्तान्त
शत्रुजय पर्वत का प्राचीन परिचय कराकर अब हम पाठकों को इस के ऊपर ले चलते हैं और वर्तमान समय में जो कुछ विद्यमान हैं उस का कुछ थोडा सा अभिज्ञान कराते हैं। ___ पालीताणा शहर में से जो सडक शत्रुजय की और जाती है वह पहाड के मूल तक पहुंचती है । इस स्थान को 'भाथा तलेटी' कहते हैं । यहां पर एक दो मकान बने हुए हैं, जिन में जो यात्री पर्वत की यात्रा कर वापस लौटता है, उसे विश्रान्ति लेने के लिये अच्छा आश्रय मिलता है । प्रत्येक यात्री को लगभग पावभर का एक मोतीचूर का लड्डु और थोडे से बेसन के सेव खाने के लिये दिये जाते हैं । इनको खा कर और ऊपर ठंडा जल पी कर थके हुए यात्री बहुत कुछ आश्वासन पाते हैं । इसको गुजराती बोली में 'भाथा' कहते हैं । इसी के नाम पर यह स्थान 'भाथा तलेटी' कहा जाता है । जो त्यागी ठंडा-(कच्चा) पानी नहीं पीते उनके लिये पानी गरम कर के ठारा हुआ भी तैयार रहता है । इक्के, गाडी, घोडे आदि वाहन यहीं तक चल सकते हैं । यहां से पहाड का चढाव शुरू होता है । चढते समय दाहनी तरफ बाबू का विशाल मंदिर मिलता है । यह मंदिर बंगाल के मुर्शिदाबादवाले सुप्रसिद्ध रायबहादुर बाबू धनपतसिंह और लक्ष्मीपतिसिंह ने अपनी माता महेताबकुंअर के स्मरणार्थ बनाया है । संवत् १९५० में, अपने बड़े रिसाले के साथ आकर बाबूजी ने बडी धामधूम से इसकी प्रतिष्ठा कराई है । इस मंदिर में बाबूजी ने बहुत धन खर्च किया है । मंदिर बडा सुशोभित और खूब सजा हुआ है । उक्त बाबूजी ने अनेक धर्मकृत्य किये हैं और उनमें लाखों रुपये बडी उदारता के साथ व्यय किये हैं । उन्होंने कोई दो-ढाई लाख रुपये खर्च कर जैन सूत्रों को भी छपवाया था । ये सूत्र सब स्थानों में,
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