Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) त-वर्ग - त् थ् द् ध् न्. ( दन्त्य ) पं वर्ग - प् फ् ब् भ् म्. ( श्रोष्ठ्य) - य्. र् ल्. व्. ( श्रन्तस्थ ) स्, ह, (ऊष्म) (अनुस्वार) * (अनुनासिक) एवं - ध्यातव्य (अ) प्राकृत भाषा में विसर्ग ( : ) स्थान में "ओ" स्वर हो जाता है । जैसेरामः- रामो । सः - सो । नहीं होता । उसके (प्रा) सामान्य प्राकृत में 'ङ' एवं 'न का प्रयोग नहीं होता । उनके स्थान पर अनुस्वार ( 2 ) का प्रयोग होता है । जैसे अङ्क – अंक, । पञ्च - पंच | (इ) शौरसेनी एवं मागधी प्राकृत को छोड़कर सर्वत्र श्, ष् एवं स् के स्थान में 'स्' का प्रयोग होता है। जैसे— विशेष :- विसेसो; हरिवंश :- हरिवंसो; एषणा - एसणा, आदि । दूसरा पाठ प्राकृत भाषा के सामान्य नियम ध्वनि परिवर्तन ( वर्ण-विकार) के सामान्य नियम प्राकृत व्याकरण के अनुसार इसे दो भागों में विभाजित किया जाता है । .. For Private and Personal Use Only

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