Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५६ ) विभक्ति-चिन्ह-जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि "विभक्ति" वह है, जिसके द्वारा गणना, अथवा संख्या और कारक का बोध हो। इनकी सूचना देने वाले संकेतों को विभक्ति-चिन्ह कहते हैं। जैसे :-पढमा (प्रथमा), . वीया (द्वितीया), ओ, स्स, म्मि आदि। शब्द रूप :--अकारान्त पुल्लिग शब्द-रूपों के कारक एवं विभक्ति-चिन्ह निम्न प्रकार होते हैंविभक्तियाँ एकवचन बहुवचन पढमा ( प्रथमा )- प्रो - ग्रा वीया (द्वितीया )- अं प्रा तइया ( तृतीया )- ण, (एण) - हि, (एहि) चउत्थी एवं छट्ठी - स्स - ण, णं (आण, आणं) पंचमी - तो, हितो, सुतो (हितो, आसुतो) सत्तमी (सप्तमी) - म्मि- सु ! एसु) संवोहण (सम्बोधन)-ओ आ इन विभक्ति-चिन्हों का प्रायोगिक रूप इस प्रकार होगाःविभक्तियाँ एकवचन . बहवचन पढमा - देव + प्रो = देवो देव+प्रा=देवा वीया - देव+ =देवं देव+पा=देवा तइया - देव । एण=देवेण देव+एहि देवेहि चउत्थी, छट्ठी- देव+स्स=देवस्स देव + पाणं =देवाणं पंचमी - देव +त्तो =देवत्तो देव+पासुतो देवाहितो · देव+आसुतो-देवासुतो For Private and Personal Use Only

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