Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७५ ) हणंति (६) हण (मारने अर्थ में) धातु पुरुष एकवचन बहुवचन प० पू० - हणइ - म० पु० - हणसि हणित्था, हणह उ० पु० - हणामि हणिमो (७) कर (करने अर्थ में-कृ--) धातु पुरुष . एकवचन बहुवचन प० पु० - करइ - करंति म. पु० - करसि करित्था, करह उ० पु० - करामि करिमो (८) पा (पीने के अर्थ में) धातु . पुरुष एकवचन बहुवचन प० पु० - पाइ म. पु० - पासि पाइत्था, पाह उ० पु० - पामि पामो (६) अस् (है, "था" के अर्थ में) धातु एकवचन वहुवचन प० पु० - अत्थि - अस्थि म० पु० - अत्थि, असि- अत्थि उ. पु० - अत्थि, अम्हि- , अत्थि, अम्हो विशेष :-अस् धातु पर पूर्वोक्त नियम पूर्ण रूप से लागू नहीं होते। ध्यातव्य-धातु-रूपों का यही क्रम आगे के भूत, भविष्यत् प्रादि कालों में भी रखा जायगा। पांति पुरुष For Private and Personal Use Only

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