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( ७३ )
( २ ) पुरुष तीनों होते हैं- प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष एवं उत्तम. पुरुष ।
(३) व्यञ्जनान्त धातुत्रों में 'प्र' विकरण जोड़कर उन्हें स्वरान्त बना दिया जाता है ।
(४) कर्तृवाच्य एवं कर्मवाच्य प्रायः एक समान होते हैं ।
(५) आत्मनेपद का प्रायः लोप एवं परस्मैपद रूपों की प्रधानता मिलती है ।
(६) वर्तमान, भूत, भविष्यत् प्राज्ञार्थक, विध्यर्थक एवं क्रियातिपत्ति इन छह कालों की प्रधानता मिलती है ।
,
(७) प्राज्ञार्थक एवं विध्यर्थक तथा भूत-काल एवं क्रियातिपत्ति के रूपों में प्रायः समानता दृष्टिगोचर होती हैं ।
(८) धातु रूपों में स्वादिगण की प्रधानता मिलती है ।
( 8 )
अस् धातु के वर्तमान, भविष्यत्, विधि, एवं आज्ञा के सभी वचनों एवं पुरुषों में एक समान रूप मिलते हैं ।
(क) वर्तमान काल के प्रत्यय-चिन्ह
पुरुष
पढभो पुरिसां
मज्झिम पुरिसो उत्तिम पूरितो
मो मु
इन प्रत्यय - चिन्हों का प्रयोग इस प्रकार किया जायगा :
एकवचन
इ, ए
सि, से
मि
(१) हो ( होने अर्थ में भू-) धातु के रूप
पुरुष
प० पु०
एकवचन
होइ
बहुवचन
न्ति, ते
इत्था, ह
बहुवचन
होंति
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