Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुवचन - ( ७२ ) चड़ ( चार ) शब्द विभक्तियाँ प० चउरो बी० त चऊहि च०, छ. चउण्हं पं० चऊहितो, चऊसुतो चऊसु इसी प्रकार पंच, छ, सत्त, अट्ट, णव, दह, तेरह आदि के शब्द रूप भी जानना चाहिए। दसवाँ पाठ . धातु रूप परिभाषा-जिस मूल-शब्द से क्रिया का अर्थ निकलता हो, उसे धातु कहते हैं और जिस शब्द से किसी कार्य का करना अथवा प्रकट होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे:--पढ+ इ क्रिया में मूल शब्द "पढ" धातु है, उसमें "इ" प्रत्यय जोड़कर उसे "पढ़इ" क्रिया बनाया, जिसका अर्थ हुअा-- "पढ़ता हैं"। तात्पर्य यह कि क्रिया के मूल-रूप को धातु कहते हैं : प्राकृत के धातु-रूपों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं : --- (१) प्राकृत के धातु-रूपों में एकवचन एवं बहुवचन ही होता है । उसमें द्विवचन नहीं होता। . For Private and Personal Use Only

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