Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - सल्वा ( ६० ) सत्तमी - देव+म्मि=देवम्मि देव + एसु=देवेसु संवोहण - हे देव+ोहे देवो हे देव+पा=हे देवा । ठीक इसी प्रकार निम्न शब्द रूप भी जानना चाहिए। जैसे: __अकारान्त पुल्लिग "सव" शब्द विभक्तियाँ एकवचन बहुवचन प० सव्वो बी० - सव्वं सव्वा त० - सव्वेण सव्वेहिं च०, छ०- सव्वस्स - सव्वाणं पं० - सव्वत्तो –सव्वाहितो, सव्वासुतो स० - सम्वम्मि - सब्बेसु वीर-शब्द विभक्तियाँ एकवचन बहुवचन प० बीरो वीरा बी० - वीरं वीरेण - वीरेहि च०, छ०- वीरस्स वीराणं प० - वीरत्तो - वीराहितो, वीरासुतो स० - वीर म्मि - वीरेसु . संवो - हे वीरो - हे वीरा वच्छ ( वृक्ष ) शब्द विभक्तियाँ एकवचन बहुवचन वच्छो वच्छा वच्छ वच्छा त० वच्छेण - वच्छेहि - - - - वीरा ० - प० बी० For Private and Personal Use Only

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