Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । उदाहरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं : विजातीय रूप- सजातीय रूप विद्या-(द् +य्+आ) - विज्जा। अवद्यम् (द्=य् +अ) - अवज्ज । । कष्ट:-(ष् + ट्) - कट्ठो नष्ट:--(+ट्) - नट्ठो कक्षा-(क् ++पा=क्षा) कक्खा पात्रः-(त् । र् +अ) - पत्तो छात्रः-(त् + र् : अ) - छत्तो अद्य:-(द् +य्) . - अज्जो (१) संज्ञा की प्रतीति कराने वाले शब्दों में 'क', 'स्क . एवं 'क्ष' के स्थान में 'ख' हो जाता है। जैसे पुष्करम्-पोखरं अथवा पोक्खरं (तालाब) निष्कम्-निक्ख (प्राचीन सिक्का) स्कन्धः-खंधो (कन्धा) स्कन्धावार:--खंधावारो। क्षत्रिय:-खत्तिो (२) 'इच', 'त्स' एवं 'प्स' के स्थान में 'च्छ' हो जाता है। जैसे : आश्चर्यम् = अच्छरियं, अच्छ रं । उत्साहः = उच्छाहो। अप्सरा = अच्छरा। लिप्सति = लिच्छइ । (३) 'ष्ट' के स्थान में 'टु' हो जाता है। जैसे-- अष्टम =अट्र। कष्टं = कटू. नष्ट: = नट्ठो। यष्टि: = लट्ठी.. इष्टः = इट्ठो। पुष्ट:=पुट्टो. For Private and Personal Use Only

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