Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपवादयह नियम निम्न शब्दों पर लागू नहीं होता-घंटा, वैकुंठो (वैकुण्ठः), मोंडं (मुण्डम्) खट्टा, चिट्ठइ, ठाइ (स्थायी), अटइ (अटंति), (५) मध्य अथवा अन्त्यवर्ती 'श' एवं 'ष' के स्थान में 'स' हो जाता है। जैसे विशेषः = विसेसो। देश: =देसो कषायः = कसाओ। पुरुषः=पुरिसो सयुक्त व्यञ्जन परिवर्तन: प्राकृत-भाषा में विजातीय संयुक्त-व्यंजनों के स्थान में सजातीय संयुक्त-व्यञ्जन हो जाता है। (क) विजातीय संयुक्त-व्यंजन वह कहलाता है, जिसमें भिन्न-भिन्न वर्गों के विविध वर्णों के मेल से शब्द बनता है। जैसे : कष्ट, विद्या, कक्षा, पात्र। यहाँ कष्ट में ''-ऊष्म वर्ण है एवं 'ट' टवर्ग का वर्ण है। विद्या में 'द्'-तवर्ग का है एवं 'य' अन्तस्थ वर्ण का है। कक्षा (क् + + आ =क्षा) में 'क'-कवर्ग का एवं'ष' -ऊष्म वर्ण का है। पात्र में 'त्र'-तवर्ग का एवं 'र'-अन्तस्थ वर्ण का है। (ख) सजातीय संयुक्त-व्यंजन: वह है, जिसमें एक ही वर्ग के वर्गों के मिलने से शब्द अथवा पद का गठन हो। यहाँ विशेष स्पष्टीकरण हेतु विजातीय एवं संयुक्त व्यंजनों के तुलनात्मक For Private and Personal Use Only

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