________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २६ ) हस+तु =हसितु, हसेउ (हँसकर) हस+अहसिन, हसेस, (हँसकर) हस + तूण-हसिऊण, हसिऊणं, हसेऊणं
_ (हँसकर) हस + तुप्राण=हसिउप्राण, णं,
हसेउप्राण, णं गह धातु से—गह- आय=गहाय (ग्रहणकर) ३. भविष्य कृदन्त :
भविष्य में किसी कार्य के होते रहने की सूचना देने के लिए धातु में 'इस्संत,' 'इस्समाण' और 'इस्सई' प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं। इनमें से इस्सई केवल स्त्रीलिंग में जोड़ा जाता है। यथार्थतः वर्तमान काल के प्रत्ययों में भविष्यत्-काल का बोधक 'इस्स' जोड़ने से ही भविष्यत्कालिक प्रत्यय बन जाते हैं। जैसे :
हस् धातु से पुल्लिग में हस+इस्संत । यो हसिस्संतो हस-+ इस्समाण+ो हसिस्समाणो तथा स्त्रीलिंग में
हस + इस्सई हसिस्सई रूप बनते हैं। ४. सम्बन्ध सूचक भूत-कृदन्त :
जब किसी एक कर्ता की अनेक क्रियाएँ हों तो पूर्वकालिक क्रिया का बोध कराने वाली धातु के साथ तु (उ) तूण (ऊण आदि प्रत्यय जोड़ दिए जाते हैं। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि तुग्राण (उप्राण, इत्ता, इत्ताण, आय, तथा पाए प्रत्ययों का प्रयोग अर्धमागधी प्राकृतागमों में मिलते हैं। इसके विविध रूप बनाने के लिए प्राकृत-वैया
For Private and Personal Use Only