Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) से.हासंतो, हासेतो; हासमाणो, हासेमाणो, हसावंतो, हसावेतो, हसावमाणो, हसावेमाणो आदि । इसी प्रकार कृ धातु (कर) के कारंतो, कारतो, करावंतो आदि रूप भी बनते हैं। (घ) प्रेरक कर्मणि वर्तमान कृदन्त :-इसमें धातु में प्रेरक प्रत्यय (अ, ए, पाव, आवे) जोड़कर उसके साथ कर्म-प्रत्यय (ईअ, इज्ज ) जोड़ें। उसके बाद न्त, माण और ई प्रत्यय जोड़ने से उक्त कृदन्त के रूप बन जाते हैं। जैसे :-हस् धातु से (हस् + अं+ ईन +न्त = ) हासीअंतो। इसी प्रकार हासीप्रमाणो, हासिज्जमाणो, हसावीअंतो, हसीवीप्रमाणो, हसा विज्जतो, हसाविज्जमाणो। २. भूतकालिक कृदन्त : प्रस्तुत कृदन्त में किसी कार्य के समाप्त हो जाने की सचना देने के लिए "अ" का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत-भाषा में इसके लिए क्त (त्) एवं क्तवतु (तवत् ) प्रत्ययों के प्रयोग मिलते हैं। इसमें कुछ प्रयोग ऐसे मिलते हैं, जो संस्कृत से ध्वनि-परिवर्तन के नियमों से बनाए गए हैं। उसमें 'अ' को कहीं-कहीं 'द' और 'त' भी हो जाता है। अतः प्रस्तुत कृदन्त में अ, द अथवा त प्रत्ययों के जुड़ने से धातु के अन्त के 'अ' के स्थान में 'इ' हो जाता है। जैसे :धातु . 'अ' प्रत्यय 'द' प्रत्यय 'त' प्रत्यय संस्कृत रूप पठ् (पढ) पढिो पढिदो पढितो पठितः । पढा) गम् (गम) गमियो गमिदो गमितो गतः (गया) कृ (कर) करियो करिदो करितो कृतः (किया) For Private and Personal Use Only

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