Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) (ख) नर्तक, खनक पथिक, गौर, मत्स्य, मनुष्य, हरिण . आदि शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने हेतु “ई” प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे :णट्टा --ई=णट्टई (नर्तकी) गोर+ईगोरी, खण+ईखणई (खनकी), माणुस + ई-माणुसी हरिण+ई-हरिणी ण+ई=णई (नदी) ग) अकारान्त जातिवाचक शब्दों को स्त्री-वाचक बनाने के लिए भी 'ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे : वग्घ + ई= बग्घी (व्याघ्री) सीह+ईसीही ( सिंहनी) हंस + ई हंसी सूअर-+इ=सूअरो ( शूकरी) रक्खस नई रक्खसी (राक्षसी) (घ) संस्कृत-भषा के इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, मृड, हिम ( महत् अर्थ में ) अरण्य ( महत् पर्व में ), यव ( दुष्ट अर्थ में ) यवन् (लिपि अर्थ में) मातुल आदि शब्दों को स्त्री-वाची बनाने के लिए 'ई' प्रत्यय तथा उसके पूर्व "प्राण" जोड़ दिया जाता है। जैसे :इंद+आण+ई = इंदाणी; भव+पाण+ई = भवाणी (पार्वती). वरुण + पाण+ई =वरुणाणी; सव्व-+आण+ई-सव्वाणी. इसी प्रकार रुद्दाणी, मिडाणी, हिमाणी अरण्णाणी, यवाणी, यवणाणी, माउलाणी शब्द बनते हैं। . . (ङ) उपाध्याय एवं प्राचार्य की सूचना देने के लिए 'ई' For Private and Personal Use Only

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