Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १ www.kobatirth.org ( ४८ ) विग्रह करते समय उसके पूर्वपद में "स्स" विभक्ति जोड़ने से उसका रूप इस प्रकार हो जायगा -धम्मस्स पुत्ती - धम्मपुत्ती । कलासु कुसलो - कलाकुसलो । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समास एवं विग्रह में अन्तर - जब सामासिक - पद के शब्दों में विभक्ति - चिन्ह जोड़कर उसे पृथक्-पृथक् रूप में बताया जाता है, तब उसे विग्रह कहते हैं । और इसके विपरीत जब विभक्ति का लोप करके दो या दो से अधिक पदों को जोड़ दिया जाता है, तब उसे समास कहते हैं, दोनों में यही अन्तर है । समास के भेद: - - प्राकृत-व्याकरण के अनुसार समास के प्रमुख रूप से चार भेद माने गए हैं : १ अव्वइ - भाव समास (अव्ययीभाव समास) ( तत्पुरुष समास ) २ तप्पुरिस - समास ३ बहुब्बीहि समास ४ दंद-समास अव्वइ-भाव- समास अव्ययीभाव का अर्थ यह है वह भी अव्यय हो जाता है । की प्रधानता होने के कारण पूर्व पद का समस्त पद अव्यय हो जाता है । इस समास का प्रयोग निम्नलिखित ११ प्रकार के प्रसंगों में होता है : (१) विभक्ति के अर्थ में, जैसे : ( बहुब्रीहि समास ) ( द्वन्द्व समास ) (२) समीप अर्थ में, जैसे कि पहले जो अव्यय नहीं था, प्रस्तुत समास में 'अव्यय' हरिम्मि इइ = अहिहरि ( हरि के विषय में ) राइणो समीवं = उवराय ( राजा के समीप ) For Private and Personal Use Only

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