Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५ ) (ख) तृतीया-जैसे:-जिआणि इंदियाणि जेण सो =जिइंदियो मुणि (जितेन्द्रिय मुनि ) (ग) चतुर्थी एवं षष्ठी-जैसे:-दिणं धणं जस्स सो =दिण्णधणो बंभणो ( दत्तधनः ब्राह्मणः)। पीअं अंबरं जस्स सोपीअंबरो कण्हो ( पिताम्बरः कृष्णः) णीलो कंठो जस्स सो=णीलकंठो ( मयूरः ) (घ) पंचमी-जैसे:-णट्टो मोहो जामो सो=णट्ठमोहोमुणो ( नष्टमोहः मुनिः), भट्ठो आयारो जानो सो= भट्टायारो जणो (भृष्टाचारः जनः), (ङ) सप्तमी-जैसे :-वीरा णरा जम्मि गामे सो= वीरणरो गामो (ऐसा ग्राम, जहाँ वीर पुरुष रहते हों)। (२) व्यधिकरण बहुव्रीहि (प्रथमान्त + षष्ठयन्त अथवा सप्तम्यन्त ) समास-जैसे :-चक्कं पाणिम्मि जस्स सो= चक्कपाणी (चक्र है हाथ में जिसके, ऐसा विष्णु ), चंदो सेहरम्मि जस्स सोचंद सेहरो (शिव :) बहुव्रीहि समास के अन्य भेद (क) उपमान पूर्वपद बहुव्रीहि समास-जिसका प्रथम पद उपमान हो । यथा : हंसगमणं इव गमणं जाए सो= हंस-गमणा। गजाणण इव आणणो जस्स सो गजाणणो (गणेशः)। (ख) निषेधार्थक अथवा ना-बहुब्रीहि समास-जैसे:ण=-ण अस्थि णाहो जस्स सो प्रणाहो (अमाथः) ण =अणणत्थि उज्जमो जस्स सो=अणुज्जमों पुरिसो (अनुद्यमः पुरुषः) For Private and Personal Use Only

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