Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . (ग) सहपूर्वपद बहुब्रोहि-जिसके पूर्वपद में 'सह' अव्यय आवे। इस “सह" का तृतीयान्त पद के साथ समास होता है । इस 'सह' के स्थान में 'स' हो जाता है। जैसेः-पुत्तेण सह =सपुत्तो। फलेण सह सहलं (सफलं) मूलेण सह = समूलं । (ग) प्रादि बहुब्रीहि-प्र (प) नि (णि) आदि उपसर्ग के साथ बहुब्रीहि समास-जैसे :-पगिट्ठ पुण्णं जस्स सो= पपुण्णो जणो (प्रपुण्यो जनः' निग्गया लज्जा जस्स सो= जिल्लज्जो णरो (निर्लज्जो नरः) . ४. दंद-द्वन्द्व-समास :-प्रस्तुत समास में सभी पद प्रधान होते हैं। इसके विग्रह में दो या दो से अधिक संज्ञाएं 'च', 'य' अथवा 'अ' शब्द से जोड़ी जाती हैं। यह समास ३ प्रकार का है :-- .: (अ) इतरेतरयोग द्वन्द्व समास-इसमें समस्त पद में बहुवचन का प्रयोग होता है तथा इसके समस्त पद प्रधान होते हैं। जैसे :-सुरा या असुरा य = सुरासुरा (सुर एवं असुर सभी देव), मोरो अहंसो अवाणरो अमोरहंसवाणरा। पुण्णं य पावं य = पुण्णापावाई। .. ... (आ) समाहार द्वन्द्व समास-प्रस्तुत समास में प्रयुक्त समस्त पदों से समूह का बोध होता है । इसी कारण समस्त पद में नपुसक एकवचन का प्रयोग होता है। जैसे :-तवो य संज़मो य एएसिं समाहारोतवसंजमणाणं य दंसणं य . चरित य एएसि समाहारो=णाणदसणचरित्त। इ) एकशेष द्वन्द्व-समास-जब समस्त पदों में से For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94