Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५४ ) (२)-पादि तप्पुरिस (प्रादि तत्पुरुष) समास-तत्पुरुष समास में जव प्रथम पद 'प' (प्र) आदि उपसर्ग-सहित हो, तब वहाँ प्रादि तत्पुरुष समास होता है। जैसे :-पगतो आयरियो=पायरियो ( प्राचार्य :) ३ बहुम्वीही (बहुव्रीहि )-समास :-जब सभी पद किसी अन्य पदार्थ के विशेषण के रूप में आवें, तव वहाँ बहुब्रोहि- समास होता है। इस समास को समझाने के लिए निम्न नियमों पर ध्यान देना आवश्यक है - - (क) इसके समस्त पद विशेषण होते हैं । अत: उनके लिंग, वचन आदि अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं। (ख) इसका विग्रह ( पदच्छेद ) करते समय 'ज' (यत्) शब्द अथवा उसके अन्य किसी रूप का प्रयोग किया जाता है, जिससे उसके पदों को अन्य पदों के साथ सम्बन्ध की जानकारी मिलती है। · बहुब्रीहि समास दो प्रकार का है-(१) समानाधिकरण (अर्थात् समान-विभक्तिक) और (२) व्यधिकरण (अर्थात् असमान विभक्तिक) । (१) समानाधिकरण बहुव्रीहि (प्रथमान्त + प्रथमान्त) समास-विग्रह (पदच्छेद) में व्यवहार में आने वाले ,'ज" (तत्) शब्द की द्वितीया आदि विभक्ति के भेद से यह समास ५ प्रकार का है। जैसे :-आरुढो वाणरो जं (रुक्ख) सोआरूढवाणरोरुक्खो (ऐसा वृक्ष, जिस पर बन्दर बैठा है)। इसी प्रकार पत्तणाणं ज सोपत्तणाणी-मुणो (ज्ञान-प्राप्त मुनि) For Private and Personal Use Only

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