Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) इसी कर्मधारय-समास का पूर्वपद जब संख्यावाची होता है, तब उसे द्विगु-समास कहा जाता है। जैसे :तिण्णि लोया=तिलोया (तीनों लोक)। इसमें पूर्वपद संख्या- .. वाची है तथा दोनों पर प्रथमान्त हैं। अतः यहाँ द्विगु-समास है। (इस द्विगु समास की चर्चा आगे की जायेगी)। . कर्मधारय अथवा समानाधिकरण तत्पुरुष समास निम्नलिखित ५ प्रकार का होता है । . (क) विशषण-पद (अर्थात् विशेषण एवं विशेष्य)जैसे :पीअं च तं वत्यं चपीअवत्थं (पीला कपड़ा)। यहाँ पर पूर्वपद अर्थात पीनं (पीला) वत्थं (वस्त्र) का विशेषण है और दोनों पद प्रथमा-विक्ति के भी हैं। अत: यहां समानाधिकरण तत्पुरुष अथवा कर्मधारय समास है। इसी प्रकार रत्तो य एसो घडो रत्तघडो आदि जानना चाहिए। . (ख) विशेषणोभय पद (विशेषण+विशेषण) जैसे :सीअं च तं उण्हं य जेलंसीउण्हं जलं (शीतल एवं उष्ण जल)। ' (ग) उपमान-पूर्वपद अर्थात उपमान-साधारणधर्म)। जैसे :-घणो इव सामोघणसामो ( मेघ के समान श्याम वर्ण), मित्रो इव चवला=मिचवलो (मृग के समान चपल) (घ) उपमेयोत्तरपद (अर्थात् उपमान + उपमेय )जैसे :-चंदो इव मुहं चंदमुहं ( चन्द्रमा के समान मुख ) वज्जो इव देहो वज्जदेहो (बज्र के समान देह )। ङ) उपमानोत्तर पद (अर्थात् उपमेय +उपमान).जैसे :-पुरिसो वग्घो ब्व-पुरिसवग्यो ( व्याघ्र के समान For Private and Personal Use Only

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