Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५१ ) (अ) तइआ-तृतीया तत्पुरुष (तृतीयान्त एवं प्रथमान्तसमास)-इसमें प्रथम पद तृतीया-विभक्ति का तथा अन्तिम पद प्रथमा-विभक्ति का होता है। जैसे :-- दयाए जुत्तो = दयाजुत्तो ( दया से युक्त);" पंकेण लित्तो = पंकलित्तो (कीचड़ से लिप्त)। ... (इ) चतुर्थी एवं षष्ठी तत्पुरुष (चतुर्थ्यन्त अथवा षठ्यन्त एवं प्रथमान्त) समास-इसमें प्रथम, पद में चतुर्थी या षष्ठी विभक्ति एवं अन्तिम पद में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे :-मोक्खाय णाणं = मोक्खणाणं ( मोक्ष के लिए ज्ञान), लोयाय हिरो=लोयहियो (लोक के लिए हितकारी)। ___चूकि चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति समान होती हैं, अतः षष्ठी के उदाहरण निम्न प्रकार दिए जा सकते हैं। जैसे:पिसुणस्स वयणं =पिय वअणं ( चुगलखोर का कथन)), देवस्स पुज्जो देवपुज्जनो (देवता का पुजारी)। ___ (ई) पंचमी तत्पुरुष (पंचम्यन्त एवं प्रथमान्त ) समास-जैसे :-संसारापो भीओ=संसारभीत्रो (संसार से भयभीत), थेणाप्रो भीमोथेणभीमो (चोर से भय) (उ) सप्तमी तत्पुरुष (सप्तम्यन्त एवं प्रथमान्त) समास - जैसे :-सहाए पंडिअो सहापंडिअो ( सभा में पण्डित ), णरेसु सेट्ठो=णरसेंट्ठो (नरों में श्रेष्ठ)। (२) समाणाहिकरण (समानाधिकरण ) तत्पुरुष-समास-इस समास का दूसरा नाम कर्मधारय-समास भी है। इसमें दोनों पद प्रथमा विभक्ति के होते हैं। जैसे-कण्हं तं वत्थंकण्हवत्थं ( कृष्ण-वस्त्र) यहाँ दोनों पद प्रथमा विभक्ति वाले हैं। For Private and Personal Use Only

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