Book Title: Saral Prakrit Vyakaran
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Prachya Bharati Prakashan

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्द से 'ई' प्रत्यय जुड़कर पाणिग्गहीदि, तथा धर्म रहित विवाहित महिला के लिए ('आ' प्रत्यय जोड़कर ) पाणिग्गहीदा, शब्द का प्रयोग होता है। (ज) संस्कृत भाषा के जानपद, कुड, गोण, स्थल, भाग, नाग, कुश, कामुक आदि शब्दों को स्त्री वाचक बनाने के लिए विकल्प से 'ई' प्रत्यय जुटता है। जैसे :जानपद+ई = जाणवई – जाणवा, कुंडी-कुडा, गोणी गोणा, थली-थला, भागी-भागा, नागी-नागा, कुसी-कुसा, कामुई-कामुमा, आदि । ३. 'ऊ' प्रत्यय के प्रयोग नगण्य ही मिलते हैं। जैसे अज्ज + उ=अज्जु, अज्जया (आर्या) कुछ विशेष स्मरणीय शब्द : . पुल्लिग स्त्रीलिंग.. गिहवइ ( गृहपति ) -- गिहवण्णी ( गृहपत्नी) विउसो (विद्वान् ) - विउसी (विदुषी ) माणुसो (मनुष्य) माणुसी (मनुष्यनी) सहा ( सखा ) . - सही . ( सखी) मुणि (मुनि) मुणी (मुनि) साहु ( साधु ) साहू (साधु ) जुवा (युवक) जुवई (युवती) सुद्दो (शूद्रः) सुद्दा, सुद्दी ( शूद्रा, शुद्री) तरुणो तरुणी महिसो महिसी निउणो (निपुण) - निउणा For Private and Personal Use Only

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